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गायत्री जयंती 2025: देवी गायत्री का महत्व और उत्पत्ति की कथा

गायत्री जयंती 2025 का आयोजन 6 जून को होगा। इस दिन देवी गायत्री की पूजा का विशेष महत्व है। जानें देवी गायत्री का स्वरूप, उनके चारों वेदों में स्थान और उनकी उत्पत्ति की रोचक कथाएं। गायत्री को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप माना जाता है। इस लेख में देवी गायत्री से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियों का संकलन किया गया है।
 

गायत्री जयंती का महत्व

गायत्री जयंती 2025: हर वर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गायत्री जयंती मनाई जाती है। इस दिन देवी गायत्री की पूजा करना विशेष फलदायी माना जाता है। इस वर्ष, गायत्री जयंती 6 जून 2025, शुक्रवार को मनाई जाएगी।


गायत्री का वेदों में स्थान

मां गायत्री को चारों वेदों—ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की जननी माना जाता है। गायत्री मंत्र में इन वेदों का सार समाहित है, इसलिए देवी गायत्री को वेदमाता कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, मां गायत्री को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप भी माना जाता है। आइए, गायत्री जयंती के इस पावन अवसर पर मां गायत्री से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण धार्मिक जानकारियों पर नजर डालते हैं।


ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप

धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां गायत्री को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का स्वरूप माना जाता है। ये तीनों देवता सृष्टि के रचनाकार, पालनहार और विनाशक हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का निर्माता माना जाता है, जिनकी पूजा सृष्टि के रचयिता के रूप में की जाती है। उनके चार सिर चार वेदों का प्रतीक हैं।


भगवान विष्णु को सृष्टि का संरक्षक माना जाता है, जबकि महेश यानी भगवान शिव सृष्टि के विनाशक हैं। ये तीनों देवता ब्रह्मांड के चक्र को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए मां गायत्री की पूजा त्रिमूर्ति के रूप में की जाती है। इसके अलावा, देवी गायत्री को भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है।


मां गायत्री का स्वरूप

मां गायत्री के पांच मुख और दस हाथ हैं। उनके चार मुख चारों वेदों का प्रतीक हैं, जबकि पांचवां मुख सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। मां के हाथों में अक्षमाला, कमल, शंख, चक्र, धनुष-बाण, त्रिशूल, गदा, कमंडल और पुस्तक हैं। एक हाथ अभय मुद्रा में है, जो सुरक्षा और आश्वासन का प्रतीक माना जाता है।


देवी गायत्री की उत्पत्ति

देवी गायत्री की उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार, ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद एक शक्ति की आवश्यकता महसूस की और देवी गायत्री की प्रार्थना की। इसी प्रार्थना से देवी गायत्री प्रकट हुईं।


एक अन्य कथा के अनुसार, देवी गायत्री ब्रह्मा जी के मुख से प्रकट हुईं। जब ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र का उच्चारण किया, तब देवी गायत्री प्रकट हुईं। कुछ पुराणों में, देवी गायत्री को ब्रह्मा जी की पत्नी सरस्वती का एक रूप भी माना गया है।