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गुरु पूर्णिमा: महत्व और उत्सव की परंपरा

गुरु पूर्णिमा, जो हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, गुरु के प्रति आभार और सम्मान का पर्व है। इस दिन शिष्य अपने गुरु से आशीर्वाद लेते हैं और महर्षि वेदव्यास की जयंती मनाते हैं। यह अवसर हमें अपने जीवन में मार्गदर्शन देने वालों को याद करने और उनके प्रति आभार व्यक्त करने का मौका देता है। जानें इस पर्व का महत्व और इसके पीछे की परंपराएं।
 

गुरु पूर्णिमा का उत्सव

गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है? आज गुरु पूर्णिमा का पर्व है, जो हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार पूरे भारत में बहुत श्रद्धा और प्रेम के साथ मनाया जाता है। इस दिन सभी शिष्यों को अपने गुरु से आशीर्वाद लेना चाहिए। यदि आपके पास गुरु नहीं हैं, तो आप अपने माता-पिता के चरणों में जाकर उनका आशीर्वाद ले सकते हैं। इस सब के बीच, यह जानना भी जरूरी है कि गुरु पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है।


गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु का स्थान हमारे जीवन में गुरु का स्थान देवताओं से भी ऊँचा माना गया है, क्योंकि वे हमें भगवान तक पहुँचने का मार्ग दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा का महत्व हमारे जीवन में अत्यधिक है। यह दिन महर्षि वेदव्यास की जयंती के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने महाभारत की रचना की और वेदों का विभाजन किया। इसलिए, इसे वेदव्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। गुरु वे व्यक्ति होते हैं जो हमेशा अपने शिष्यों की भलाई की कामना करते हैं, और यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा को ज्ञान और सम्मान का पर्व माना जाता है।


गुरु पूर्णिमा का सामाजिक महत्व

आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में, गुरु पूर्णिमा एक ऐसा अवसर है जब हम उन लोगों को याद करते हैं जिन्होंने हमें सही मार्ग दिखाया। यह दिन हमें अपने जीवन में उनके योगदान के लिए आभार व्यक्त करने का मौका देता है। यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आत्म-चिंतन और आभार व्यक्त करने के लिए भी खास होता है। इस दिन, अपने माता-पिता को भी धन्यवाद देना न भूलें, क्योंकि वे पहले शिक्षक होते हैं जो हमें जीवन के पहले अक्षर सिखाते हैं।