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गुरु हर किशन सिंह जी: एक युवा संत की प्रेरणादायक कहानी

गुरु हर किशन सिंह जी का जीवन एक प्रेरणादायक कहानी है, जिसमें उन्होंने कम उम्र में गुरु की गद्दी संभाली और सेवा, करुणा और समर्पण का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका जन्म 1656 में हुआ और उन्होंने 8 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कहा। उनकी जीवन गाथा न केवल सिखों के लिए, बल्कि समस्त मानवता के लिए एक प्रेरणा है। जानें उनके अद्वितीय कार्यों और उनके द्वारा छोड़े गए संदेश के बारे में।
 

गुरु हर किशन सिंह जी का अद्वितीय जीवन


सिख इतिहास में कुछ ही उदाहरण मिलते हैं जब किसी ने इतनी कम उम्र में आध्यात्मिक ऊंचाइयों को छुआ हो। गुरु हर किशन सिंह जी ने न केवल युवा अवस्था में गुरु की गद्दी संभाली, बल्कि उनके द्वारा प्रदर्शित करुणा, सेवा और समर्पण आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करता है।


गुरु हर किशन सिंह जी का जन्म 7 जुलाई 1656 को पंजाब के कीरतपुर साहिब में हुआ। वे गुरु हर राय जी और माता कृष्णा कौर (सुलक्षणी) के छोटे बेटे थे। गुरु हर राय जी ने अपने बड़े बेटे राम राय को गुरु की गद्दी से वंचित कर दिया और केवल 5 वर्ष की आयु में हर किशन जी को आठवां गुरु घोषित किया। इस निर्णय से राम राय नाराज हुए और मुगल सम्राट औरंगजेब से इसकी शिकायत की। औरंगजेब जानना चाहता था कि यह छोटा बच्चा सिखों का मार्गदर्शक कैसे बन गया। उस समय दिल्ली हैजा और चेचक की महामारी से ग्रस्त थी।


राजा जय सिंह ने गुरु हर किशन सिंह जी को अपने बंगले में ठहराया, जिसे आज गुरुद्वारा बंगला साहिब के नाम से जाना जाता है। यहीं पर गुरु जी ने बिना किसी भेदभाव के बीमारों की सेवा की। उन्होंने अपने नन्हे हाथों से पानी पिलाया और मरहम-पट्टी की। उनकी सेवा देखकर दिल्ली के मुसलमान भी श्रद्धा से झुक गए और उन्हें 'बाला पीर' कहने लगे। सेवा करते-करते गुरु जी स्वयं भी चेचक की चपेट में आ गए। कई दिनों तक बीमार रहने के बाद, जब उनका अंतिम समय आया, तो उन्होंने अपनी मां को संकेत दिया- 'बाबा बकाला'। यह संकेत था कि अगले गुरु बकाला गांव में मिलेंगे, जो बाद में गुरु तेग बहादुर जी के रूप में पूरा हुआ।


3 अप्रैल 1664 को, 8 वर्ष की आयु में गुरु हर किशन सिंह जी का निधन हो गया। जिस स्थान पर उन्होंने अंतिम समय बिताया, वह आज गुरुद्वारा बंगला साहिब के रूप में श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है। गुरु हर किशन सिंह जी की जीवन गाथा न केवल सिखों के लिए, बल्कि समस्त मानवता के लिए सेवा, सहानुभूति और परोपकार का एक आदर्श उदाहरण है। उन्होंने यह साबित किया कि उम्र नहीं, बल्कि भावना ही किसी को महान बनाती है।