गुरूपूर्णिमा: गुरु की महिमा और हमारे जीवन में उनका स्थान
गुरूपूर्णिमा का पर्व हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन भक्त अपने गुरु और प्रेरणास्त्रोतों की पूजा करते हैं। गुरु का आशीर्वाद जीवन में महत्वपूर्ण होता है, और यह हमें ज्ञान और दिशा प्रदान करता है। इस लेख में हम गुरु की महिमा, गुरूपूर्णिमा का महत्व और माँ को पहले गुरु के रूप में मान्यता के बारे में जानेंगे। जानें कैसे गुरु की कृपा से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।
Jul 10, 2025, 11:08 IST
गुरु की महिमा
"जै जै जै हनुमान गोसाईं, कृपा करहुं गुरुदेव की नाईं।" यह हनुमान चालीसा की एक प्रसिद्ध चौपाई है। इस चौपाई का अर्थ समझना आवश्यक है, क्योंकि इसके माध्यम से हम वीर हनुमान जी से गुरु के समान आशीर्वाद की कामना करते हैं। ध्यान रहे, गुरु का आशीर्वाद हमेशा फलदायी होता है। हनुमान जी की कृपा शीघ्रता से प्राप्त होती है। वे हर दृष्टि से आदर्श हैं और भगवान के सेवक के रूप में अद्वितीय हैं। भक्ति और सेवा के माध्यम से हम उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं। हनुमान जी राम का नाम सुनकर प्रसन्न होते हैं, इसलिए हमें प्रतिदिन राम-राम का जाप करना चाहिए। जो व्यक्ति ज्ञान को आत्मसात करता है, वही ज्ञानी कहलाता है। उनके आचरण में भी यह ज्ञान परिलक्षित होता है। भारत के ऋषि-मुनियों ने इसी ज्ञान के मार्ग पर चलकर जीवन का सार प्रस्तुत किया है। यह दर्शन केवल भारतीय संस्कृति में ही संभव है।
गुरूपूर्णिमा का महत्व
गुरूपूर्णिमा का पर्व हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन सभी भक्त अपने आध्यात्मिक गुरु और प्रेरणास्त्रोतों की पूजा करते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भगवा ध्वज को अपना गुरु मानते हुए इसे भारत की विजय का प्रतीक माना है। आज भगवा ध्वज के बारे में जो भ्रांतियाँ फैलाई जा रही हैं, वे भारत के इतिहास को नकारने का प्रयास हैं। यदि हम गुलामी के काल से पहले के भारत का अध्ययन करें, तो भगवा का वास्तविक महत्व समझ में आएगा।
माँ: प्रथम गुरु
भारत में माँ को पहला गुरु माना जाता है। बचपन में जो कुछ भी हम सीखते हैं, वह माँ से ही होता है। शास्त्रों में भी यह उल्लेखित है कि बचपन के संस्कार कभी मिट नहीं सकते। इसलिए बच्चों को अच्छे संस्कार देने की प्रक्रिया बचपन से ही शुरू करनी चाहिए। त्रेता युग में भी दशरथ महाराज के कई गुरु थे, जिनमें से वशिष्ठ जी उनके आध्यात्मिक गुरु थे। भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु बनाए, जो यह दर्शाता है कि उन्होंने हर जगह से सीखने का प्रयास किया। जब आपके मन में गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा होगी, तो गुरु स्वयं आपको खोज लेंगे।
गुरूपूर्णिमा का सार
गुरूपूर्णिमा का दिन हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है। इस दिन हम अपने आराध्य की साधना करते हैं, जिसका अर्थ है अपने आप को साधना। जिसने अपने मन को गुरु की भक्ति में लीन कर दिया, उसके लिए गुरु भगवान के समान होते हैं। भारत में कई उदाहरण हैं कि जब कोई मुसीबत में होता है, तो वह गुरु को याद करता है और गुरु किसी न किसी रूप में उसकी सहायता करते हैं। गुरूपूर्णिमा तभी सार्थक होती है जब हम अपने आराध्य को सब कुछ अर्पित करने का भाव अपने मन में जागृत कर सकें।