चंद्रग्रहण के दौरान चार प्रमुख मंदिरों के खुलने का रहस्य
चंद्रग्रहण का समय और सूतक काल
इस बार चंद्रग्रहण 7-8 सितंबर की रात को होगा। सूतक काल, जो कि ग्रहण से 9 घंटे पहले शुरू होता है, के दौरान भारत के चार प्रमुख मंदिरों के दरवाजे खुले रहेंगे। इन मंदिरों के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं हैं। इनमें केरल का तिरुवरप्पु श्री कृष्ण मंदिर, बिहार का विष्णुपद मंदिर, आंध्र प्रदेश का कालहस्तीश्वर मंदिर और मध्य प्रदेश का महाकालेश्वर मंदिर शामिल हैं।
केरल का तिरुवरप्पु श्री कृष्ण मंदिर
भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित यह मंदिर सूतक काल में खुला रहता है। मान्यता है कि यहां भगवान कृष्ण हमेशा भूख से पीड़ित रहते हैं। एक बार ग्रहण के समय जब मंदिर के दरवाजे बंद थे, एक पुजारी ने देखा कि कृष्ण की कमर ढीली हो गई थी, जो उनकी भूख का संकेत था। तभी से यह मंदिर ग्रहण के दौरान नियमित पूजा और भोग अर्पित करने के लिए खुला रहता है।
बिहार के गया का विष्णुपद मंदिर
यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और पूर्वजों के लिए पिंडदान करने का एक महत्वपूर्ण स्थान है। परंपरा के अनुसार, ग्रहण के समय यहां अनुष्ठान करना बहुत शुभ माना जाता है, इसलिए यह मंदिर सूतक काल में भी भक्तों के लिए खुला रहता है।
आंध्र प्रदेश का कालहस्तीश्वर मंदिर
भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर पर सूतक काल का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मान्यता है कि ग्रहण के समय राहु और केतु भगवान शिव की पूजा करते हैं, इसलिए इस मंदिर पर उनका नकारात्मक प्रभाव नहीं होता। भक्तगण ग्रहण के दौरान विशेष पूजा करने के लिए यहां आते हैं।
मध्य प्रदेश में उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर में चंद्रग्रहण के दौरान नियमों में बदलाव होता है, लेकिन मंदिर के दरवाजे खुले रहते हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ही महाकाल हैं और उन्हें ग्रहण से कोई खतरा नहीं होता। सूर्य और चंद्रमा स्वयं महाकाल के अंश हैं, इसलिए ग्रहण का देवता पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता।
सूतक काल के दौरान नियमों में बदलाव
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में सूतक काल के दौरान भक्तों और पुजारियों को ज्योतिर्लिंग को छूने की अनुमति नहीं होती। दर्शन दूर से ही किए जाते हैं। ग्रहण के समय आरती और अन्य अनुष्ठानों के कार्यक्रम में बदलाव किया जा सकता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद, मंदिर को पवित्र नदी के जल से धोकर शुद्ध किया जाता है।