जनेऊ: धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व
जनेऊ का परिचय
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः॥
जनेऊ की परंपरा
जनेऊ को उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, और ब्रह्मसूत्र के नाम से भी जाना जाता है। इसकी धारण की परंपरा प्राचीन है और वेदों में इसे धारण करने की सलाह दी गई है। इसे उपनयन संस्कार के दौरान पहना जाता है, जिसका अर्थ है 'ब्रह्म और ज्ञान के पास ले जाना'। यह हिन्दू धर्म के 24 संस्कारों में से एक है, जिसमें मुंडन और पवित्र जल में स्नान भी शामिल है।
जनेऊ धारण करने के नियम
जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को सभी नियमों का पालन करना अनिवार्य है। एक बार इसे धारण करने के बाद इसे उतारा नहीं जा सकता। यदि यह मैला हो जाए, तो तुरंत दूसरा जनेऊ धारण करना आवश्यक है।
कौन कर सकता है जनेऊ धारण?
हिन्दू धर्म में हर व्यक्ति को जनेऊ पहनने का अधिकार है, बशर्ते वह इसके नियमों का पालन करे। यह केवल ब्राह्मणों तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के सभी वर्गों के लिए है। द्विज बालक को यज्ञ और स्वाध्याय का अधिकार जनेऊ पहनने के बाद ही मिलता है।
जनेऊ का महत्व
जनेऊ को संस्कृत में 'यज्ञोपवीत' कहा जाता है, जो तीन धागों वाला एक पवित्र सूत्र है। इसे बाएं कंधे पर और दाईं भुजा के नीचे पहना जाता है। इसके तीन धागे त्रिमूर्ति, ऋण और गुणों का प्रतीक हैं।
जनेऊ का वैज्ञानिक दृष्टिकोण
वैज्ञानिक दृष्टि से जनेऊ पहनना स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है और व्यक्ति को स्वच्छता के नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।
जनेऊ धारण करने की विधि
जनेऊ धारण करने के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया जाता है, जिसमें परिवार के सभी सदस्य शामिल होते हैं। इसे विशेष विधि से बनाया जाता है और गुरु दीक्षा के बाद हमेशा धारण किया जाता है।
जनेऊ के नियम और महत्व
जनेऊ को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ाना चाहिए। यह धार्मिक कार्यों और पूजा-पाठ के लिए आवश्यक है। जनेऊ धारण करने से व्यक्ति की पवित्रता बढ़ती है और यह व्रतशीलता का प्रतीक माना जाता है।