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ज़मज़म का पानी: इस्लाम में श्रद्धा और चमत्कार का प्रतीक

ज़मज़म का पानी इस्लाम में श्रद्धा और चमत्कार का प्रतीक है। यह पानी हज़रत इब्राहीम और बीबी हाजरा की कहानी से जुड़ा हुआ है। जानें कैसे यह पानी आज भी बहता है और मुसलमानों के लिए इसका क्या महत्व है।
 

ज़मज़म का पानी: क्या है इसकी विशेषता?

इस्लाम में ज़मज़म का पानी एक ऐसा नाम है, जो श्रद्धा, भक्ति और चमत्कार का प्रतीक बन चुका है।


जब कोई मुसलमान हज या उमराह से लौटते समय इस पानी को अपने साथ लाता है, तो वह केवल एक बोतल पानी नहीं लाता, बल्कि एक सदियों पुरानी दुआ और आस्था की धरोहर लेकर आता है।


यह पानी मक्का की पवित्र भूमि से निकलता है और आज भी बह रहा है, जबकि इसका स्रोत एक सूखे रेगिस्तान के बीच स्थित है। आइए जानते हैं इस अद्भुत पानी की कहानी, जो हर मुसलमान के दिल में बसी हुई है।


ज़मज़म का पानी: हज़रत इब्राहीम और बीबी हाजरा की कहानी

इस कहानी की शुरुआत हजारों साल पहले होती है, जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अल्लाह का आदेश मिला कि वे अपनी पत्नी बीबी हाजरा और बेटे हज़रत इस्माईल को एक निर्जन स्थान पर छोड़ दें।


यह स्थान आज मक्का के नाम से जाना जाता है। वहां न खाने के लिए कुछ था, न पानी और न ही कोई बस्ती। लेकिन इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अल्लाह पर विश्वास रखते हुए ऐसा किया।


जब बीबी हाजरा अपने छोटे बेटे के साथ उस तपते रेगिस्तान में अकेली रह गईं, तो थोड़ी देर बाद इस्माईल को प्यास लगी। मां की ममता जाग उठी और उन्होंने पानी की तलाश में सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच दौड़ लगाई। लेकिन उन्हें कहीं पानी नहीं मिला।


जब सूखी धरती से फूटा पानी का सोता

जब बीबी हाजरा हार मानने वाली थीं, तभी एक चमत्कार हुआ। हज़रत इस्माईल ने जब अपनी एड़ियों को जमीन पर मारा, तो वहां से एक पानी का सोता फूट पड़ा।


बीबी हाजरा घबरा गईं और बोलीं, "ज़म ज़म!" यानी "रुक जाओ!" ताकि पानी बह न जाए और वहीं ठहर जाए। तभी से इस चमत्कारी पानी का नाम ज़मज़म पड़ा।


इस पानी की खासियत यह है कि हजारों साल बीतने के बाद भी इसका बहाव कभी नहीं रुका। लाखों लोग इसे हर साल बोतलों में भरकर ले जाते हैं, लेकिन यह कभी सूखता नहीं।


इस्लाम में ज़मज़म का पानी: पवित्रता का प्रतीक

ज़मज़म के पानी को इस्लाम में केवल प्यास बुझाने का साधन नहीं माना जाता, बल्कि इसे शिफा यानी इलाज का माध्यम माना गया है।


मान्यता है कि इस पानी में बीमारियों को दूर करने की शक्ति होती है और यह अल्लाह की रहमत से भरा होता है।


इसलिए मुसलमान इसे संभालकर रखते हैं, खड़े होकर तीन घूंट में पीते हैं और पीते समय काबा शरीफ की ओर मुंह करके "बिस्मिल्लाह" कहते हैं। साथ ही, शिफा की दुआ भी मांगते हैं।


ज़मज़म का कुआं: मक्का में आज भी बह रहा है

मक्का की सबसे पवित्र जगह, मस्जिद अल-हरम के भीतर वह कुआं स्थित है, जिससे यह चमत्कारी पानी निकलता है।


सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच बीबी हाजरा की दौड़ की याद में आज भी हज के दौरान मुसलमान सात बार दौड़ लगाते हैं।


इस पानी का उपयोग केवल पीने के लिए किया जाता है, ना इससे खेती होती है और ना ही यह किसी अन्य काम में आता है। इसका अस्तित्व एक चमत्कार है, जो हर साल लाखों लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है।


ज़मज़म का पानी: इस्लामिक इतिहास और आस्था का प्रतीक

ज़मज़म का पानी केवल एक जल स्रोत नहीं, बल्कि इस्लामिक इतिहास और आस्था का प्रतीक है। इसकी कहानी बीबी हाजरा और हज़रत इस्माईल की तड़प और अल्लाह की रहमत से जुड़ी है।


मक्का के रेगिस्तान में आज भी बहता यह पानी मुसलमानों के लिए एक चमत्कारी उपहार है, जिसमें शिफा, रहमत और सैकड़ों सालों की परंपरा समाई हुई है।