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त्रयोदशी श्राद्ध: विशेष पूजा और व्रत का अद्भुत संयोग

19 सितंबर को त्रयोदशी श्राद्ध का आयोजन किया जाएगा, जिसमें शुक्र प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि का दुर्लभ संयोग बन रहा है। इस दिन पितरों का श्राद्ध और शिवजी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। जानें इस दिन की पूजा विधि, श्राद्ध का महत्व और किन पितरों के लिए यह विशेष है।
 

त्रयोदशी श्राद्ध का महत्व


पितरों का श्राद्ध और शिव पूजा का विशेष दिन


सनातन धर्म में तिथियों का महत्व अत्यधिक है, और त्रयोदशी तिथि इनमें से एक महत्वपूर्ण तिथि है। इस वर्ष, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 19 सितंबर, शुक्रवार को आ रही है। इस दिन एक अद्भुत संयोग बन रहा है, क्योंकि त्रयोदशी श्राद्ध के साथ शुक्र प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि का दुर्लभ योग भी है। पंचांग के अनुसार, इस दिन सूर्य कन्या राशि में और चंद्रमा कर्क राशि में सुबह 7:05 बजे तक रहेंगे, उसके बाद वे सिंह राशि में प्रवेश करेंगे।


श्राद्ध का महत्व और विधि

अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:50 बजे से शुरू होकर 12:39 बजे तक रहेगा। अब सवाल यह है कि त्रयोदशी श्राद्ध का महत्व क्या है और इसे कैसे किया जाता है।


त्रयोदशी पर श्राद्ध के लिए विशेष पितर



  • जिनका निधन त्रयोदशी को हुआ: यदि किसी प्रियजन का निधन त्रयोदशी तिथि पर हुआ है, तो उनका श्राद्ध इसी दिन करना उचित है।

  • जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं: कई बार किसी परिजन की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, ऐसी स्थिति में त्रयोदशी को उनका श्राद्ध किया जा सकता है।

  • बाल्यावस्था में मृत्यु: जिन बच्चों की मृत्यु कम उम्र में हुई हो, उनके लिए भी त्रयोदशी का दिन विशेष है।


श्राद्ध की विधि


श्राद्ध एक पवित्र क्रिया है, जिसे श्रद्धा और शांति के साथ करना चाहिए।



  • स्नान और सफाई: सबसे पहले स्नान करें और श्राद्ध स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।

  • सही समय का चयन: श्राद्ध का समय दोपहर में, विशेषकर कुतुप काल (लगभग 11:36 से 12:24 बजे) में करना उत्तम होता है।

  • तर्पण विधि: दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें और कुश, जल, गंगाजल, दूध, जौ, शक्कर और काले तिल मिलाकर तर्पण करें।

  • पितरों का मंत्र: ॐ पितृ देवतायै नम: या ॐ पितृ गणाय विद्महे जगत धारिणे धीमहि तन्नो पितृ: प्रचोदयात् का जाप करें।

  • ब्राह्मणों को आमंत्रित करें: श्राद्ध में ब्राह्मणों को बुलाकर उन्हें भोजन कराना आवश्यक है।

  • दान और दक्षिणा: भोजन के बाद अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें वस्त्र, अन्न, दक्षिणा आदि दें।

  • जीवों के लिए अन्न निकालें: गाय, कौए, कुत्ते और चींटियों के लिए भी अन्न निकालें।