देवशयनी एकादशी: भगवान विष्णु की चार महीने की निद्रा का महत्व
देवशयनी एकादशी, जो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आती है, भगवान विष्णु की चार महीने की निद्रा का प्रतीक है। इस दिन से चौमासे की शुरुआत होती है, और भगवान विष्णु पाताल लोक में निवास करते हैं। इस लेख में जानें कि कैसे इस दिन उपवास और पूजा विधि का पालन किया जाता है, और इसके पीछे की कथा क्या है। यह एकादशी धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, और इसके दौरान कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता।
Jul 5, 2025, 11:04 IST
देवशयनी एकादशी का परिचय
देवशयनी एकादशी, जो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आती है, को 'पद्मनाभा' और 'हरिशयनी' एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने के लिए पाताल लोक में निवास करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इस दिन से चौमासे की शुरुआत होती है, और भगवान विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं। इसलिए इसे 'हरिशयनी एकादशी' कहा जाता है।
चार महीने का महत्व
इन चार महीनों में भगवान विष्णु के शयन के कारण कोई भी शुभ कार्य, जैसे विवाह, नहीं किया जाता। धार्मिक दृष्टि से यह समय भगवान विष्णु का निद्रा काल माना जाता है। इस दौरान तपस्वी एक स्थान पर रहकर तपस्या करते हैं, जबकि केवल ब्रज की यात्रा की अनुमति होती है, क्योंकि इस समय सभी तीर्थ ब्रज में निवास करते हैं।
शंखासुर का वध और बलि का यज्ञ
आषाढ़ शुक्ल एकादशी को शंखासुर दैत्य का वध हुआ था, जिसके कारण भगवान विष्णु चार महीने तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं। यह भी कहा जाता है कि भगवान ने वामन रूप में दैत्य बलि से तीन पग भूमि मांगी थी। पहले पग में उन्होंने पृथ्वी और आकाश को ढक लिया, दूसरे में स्वर्ग लोक लिया, और तीसरे में बलि ने अपने आप को समर्पित किया। इस प्रकार भगवान ने बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया।
उपवास और पूजा विधि
इस दिन उपवास करके श्रद्धालुओं को भगवान विष्णु की सोने, चांदी, तांबा या पीतल की मूर्ति बनवाकर उसका षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। इसके बाद मूर्ति को सफेद चादर से ढककर पलंग पर शयन कराना चाहिए। श्रद्धालुओं को चार महीनों के लिए अपनी इच्छानुसार आहार का त्याग करना चाहिए।
देवशयनी एकादशी की कथा
एक बार देवऋषि नारद ने ब्रह्माजी से देवशयनी एकादशी के बारे में पूछा। ब्रह्माजी ने बताया कि सतयुग में मान्धाता नामक सम्राट के राज्य में अकाल पड़ा था। राजा ने ऋषि अंगिरा से सलाह ली, जिन्होंने आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा ने व्रत किया और उनके राज्य में वर्षा हुई, जिससे अकाल समाप्त हुआ और समृद्धि लौट आई।