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पापांकुशा एकादशी: महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

पापांकुशा एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस व्रत का उद्देश्य पापों का नाश करना और सुख-समृद्धि की प्राप्ति करना है। इस लेख में, हम आपको पापांकुशा एकादशी के शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और मंत्रों के बारे में जानकारी देंगे। जानें कैसे इस व्रत को सही तरीके से किया जाए और इसके लाभ क्या हैं।
 

पापांकुशा एकादशी का महत्व

हिंदू धर्म में पापांकुशा एकादशी का विशेष स्थान है। यह व्रत हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। पापांकुशा एकादशी व्रत का उद्देश्य 'पापों' का नाश करना है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही, व्रति को सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस लेख में हम पापांकुशा एकादशी के शुभ मुहूर्त, पूजन विधि और मंत्रों की जानकारी साझा करेंगे।


शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, 03 अक्तूबर 2025 को अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:46 से 12:34 बजे तक रहेगा। इसके बाद रात 10:56 से 12:30 बजे तक अमृत काल होगा। व्रत का पारण 04 अक्तूबर 2025 को सुबह 06:23 से 08:44 बजे के बीच किया जाएगा।


पूजन विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। फिर श्रीहरि भगवान विष्णु का पंचामृत से अभिषेक करें। भगवान विष्णु को पीले फूल, तुलसी दल और पीली मिठाई अर्पित करें। इसके बाद धूप-दीप जलाकर आरती करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। इस दौरान 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय नम:' का जाप करें। अंत में, किसी गरीब या ब्राह्मण को वस्त्र, अन्न या दक्षिणा दान करें और उन्हें भोजन कराएं। व्रत का समापन सात्विक भोजन से करें और द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले पारण कर लें।


मंत्र

ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु ।


यद्दीदयच्दवस ऋतप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्”।।


वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |


पुष्पसारा,नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ।।


एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |


य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत।।


ॐ वासुदेवाय विघ्माहे वैधयाराजाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||


ॐ तत्पुरुषाय विद्‍महे अमृता कलसा हस्थाया धीमहि तन्नो धन्वन्तरी प्रचोदयात् ||