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पितृ पक्ष में गीता के 7वें अध्याय का पाठ: पितृ दोष से मुक्ति के उपाय

पितृ पक्ष के दौरान गीता के 7वें अध्याय का पाठ करने से पितृ दोष से मुक्ति के कई उपाय बताए गए हैं। यह न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि परिवार में आने वाली कठिनाइयों से भी राहत दिलाता है। जानें कैसे गीता का पाठ आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है और किन चीजों का दान करना महत्वपूर्ण है।
 

गीता का पाठ: मन की शांति का साधन

गृहस्थ जीवन में गीता का पाठ एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि इसके अध्ययन से जीवन में आने वाली कठिनाइयों से भी राहत मिलती है। विशेष रूप से पितृ पक्ष के दौरान गीता का पाठ करना पितृ दोष से मुक्ति का एक प्रभावी उपाय माना जाता है।


पितृ दोष के लक्षण और गीता का महत्व

कई लोग पितृ दोष से प्रभावित होते हैं, जिसके संकेतों में परिवार में आकस्मिक मृत्यु, लंबे समय तक बीमार रहना, विकलांग बच्चों का जन्म, और बच्चों द्वारा असम्मानित व्यवहार शामिल हैं। गीता के सातवें अध्याय में इन समस्याओं का समाधान बताया गया है।


सातवें अध्याय के श्लोकों का पाठ

यदि आप पितृ पक्ष के दौरान पितृ दोष से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो श्रीमद्भागवत गीता के सातवें अध्याय के 30 श्लोकों का पाठ कराना चाहिए। यह उपाय पितृों को प्रेत योनि से मुक्त करने में सहायक होता है।


दान का महत्व

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से इसका फल कई गुना बढ़ जाता है। तर्पण की प्रक्रिया में तिल मिश्रित जल अर्पित किया जाता है, जो पिंडदान का एक हिस्सा है। पितृ पक्ष के दौरान गाय, भूमि, वस्त्र, काला तिल, सोना, घी, गुड़, धान, चांदी, और नमक का दान विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।