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पौष अमावस्या: पितृ दोष से मुक्ति के लिए करें ये विशेष उपाय

पौष अमावस्या, जो 19 दिसंबर को मनाई जाएगी, पितरों की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन विशेष उपायों के माध्यम से पितरों को प्रसन्न किया जा सकता है, जिससे जीवन में सुख और शांति बनी रहती है। जानें इस दिन के महत्व और पितृ दोष से मुक्ति के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में।
 

पितरों को समर्पित यह तिथि


पौष अमावस्या, नई दिल्ली: वैदिक पंचांग के अनुसार, 19 दिसंबर को पौष अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा। यह दिन पितरों की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन पितरों की पूजा करने से साधक के जीवन में सुख और शांति बनी रहती है। यदि पितर नाराज होते हैं, तो इसके संकेत भी मिलते हैं। आइए जानते हैं कि पौष अमावस्या के दिन पितरों को प्रसन्न करने के लिए क्या करना चाहिए।


पौष अमावस्या 2025 की तिथि और समय

पंचांग के अनुसार, पौष अमावस्या की शुरुआत 19 दिसंबर को सुबह 04:59 बजे होगी और इसका समापन 20 दिसंबर को सुबह 07:12 बजे होगा। इस प्रकार, 19 दिसंबर को पौष अमावस्या का पर्व मनाया जाएगा।


पितृ प्रसन्न करने के उपाय

यदि आप अपने जीवन में सुख और शांति की कामना करते हैं, तो पौष अमावस्या का दिन आपके लिए शुभ है। इस दिन सुबह स्नान के बाद पूर्वजों का तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करें। इसके साथ ही, गरीबों में अन्न और तिल का दान करें। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इन उपायों से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।


पीपल के पेड़ की पूजा

पौष अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन शाम को पीपल के पेड़ के पास सरसों के तेल का दीपक जलाएं और उसके चारों ओर 5 या 7 बार परिक्रमा करें। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस उपाय से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और शनिदेव तथा पितरों की कृपा प्राप्त होती है।


सुख-समृद्धि का आशीर्वाद

पितरों को प्रसन्न करने के लिए पौष अमावस्या की शाम को घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाएं। इस दौरान पितरों का ध्यान करें। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस उपाय से पितृ प्रसन्न होकर सुख और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।


पितृ मंत्र

1. ॐ पितृ देवतायै नमः
2. ॐ पितृ गणाय विद्महे जगतधारिणे धीमहि तन्नो पित्रो प्रचोदयात्।
3. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।
4. ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।