×

प्रदोष व्रत: जानें इसके महत्व और कथा

प्रदोष व्रत एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है, जो भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को आयोजित होता है और इसके माध्यम से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस लेख में प्रदोष व्रत का महत्व, इसकी पौराणिक कथा और इसके लाभों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। जानें कैसे यह व्रत आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकता है।
 

प्रदोष व्रत का महत्व


प्रदोष व्रत रखने से मनोकामना होती है पूर्ण
प्रदोष व्रत का आयोजन भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने, सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति, धन और समृद्धि, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-शांति के लिए किया जाता है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में, यानी सूर्यास्त के बाद किया जाता है। इस व्रत के माध्यम से व्यक्ति की इच्छाएं पूरी होती हैं, पाप समाप्त होते हैं और शिव धाम की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों की स्तुति करते हैं।


प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा

एक प्राचीन कथा के अनुसार, चंद्रमा को एक गंभीर रोग था, जिससे वह अत्यधिक कष्ट में था। भगवान शिव ने त्रयोदशी के दिन चंद्रमा के दोष का निवारण किया और उसे पुनर्जीवित किया। इसी कारण इस तिथि को प्रदोष कहा जाता है।


शुक्र प्रदोष व्रत की कथा

पौराणिक कथा में एक गांव में तीन मित्र रहते थे: एक राजकुमार, एक ब्राह्मण और एक धनिक। राजकुमार और ब्राह्मण विवाहित थे, जबकि धनिक का विवाह होना बाकी था। एक दिन ब्राह्मण ने कहा कि नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है। धनिक ने यह सुनकर अपनी पत्नी को लाने का निर्णय लिया।


हालांकि, उसके माता-पिता ने उसे समझाया कि शुक्र देवता डूबे हुए हैं और इस समय बहू-बेटियों को विदा करना शुभ नहीं है। लेकिन धनिक ने उनकी बात नहीं मानी और ससुराल पहुंच गया। वहां विदाई के बाद, उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।


जब ब्राह्मण को धनिक की स्थिति का पता चला, तो उसने उसके माता-पिता को शुक्र प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। व्रत के प्रभाव से धनिक की स्थिति में सुधार हुआ और वह स्वस्थ हो गया।