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बिश्नोई संत स्वामी राजेंद्रानंद का निधन: समाज में शोक की लहर

बिश्नोई संत स्वामी राजेंद्रानंद का निधन शुक्रवार को हुआ, जब वह जन्माष्टमी के अवसर पर शोभा यात्रा के बाद बीमार पड़े। उनके निधन से बिश्नोई समाज में शोक की लहर दौड़ गई है। स्वामी राजेंद्रानंद ने अपना जीवन गायों की सेवा में समर्पित किया और कई बार गोशालाओं में कथा की। जानें उनके अंतिम क्षणों की कहानी और समाज पर उनके प्रभाव के बारे में।
 

स्वामी राजेंद्रानंद का निधन


डबवाली में जन्माष्टमी के अवसर पर शोभा यात्रा के बाद बिगड़ी तबीयत


बिश्नोई समाज के प्रमुख संत स्वामी राजेंद्रानंद का शुक्रवार को निधन हो गया। वह सिरसा के डबवाली स्थित बिश्नोई मंदिर में जांम्भाजी कथा कर रहे थे। जन्माष्टमी के अवसर पर शोभायात्रा निकालने के बाद उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई।


स्वामी राजेंद्रानंद को तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन बठिंडा पहुंचने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। उनके निधन की खबर से बिश्नोई समाज में शोक की लहर दौड़ गई।


आज हिसार के बिश्नोई मंदिर में आयोजित कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया है। स्वामी राजेंद्रानंद ने अपना जीवन गायों की सेवा में समर्पित किया था। उनका जन्म 6 नवंबर 1973 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में हुआ था।


अंतिम क्षणों की कहानी

स्वामी राजेंद्रानंद के अंतिम समय में उनके शिष्य संजय ने बताया कि जब गुरु शोभा यात्रा से लौटे, तो उन्हें सीने में तेज दर्द महसूस हुआ। उन्होंने कहा कि उनकी सांसें टूट रही हैं और यह उनके लिए गौ सेवा का अंत था। इसके बाद उन्होंने आंखें बंद कर लीं।


गायों की सेवा के प्रति समर्पण

स्वामी राजेंद्रानंद अक्सर गोशालाओं में कथा करते थे और चंदे की राशि को गोशालाओं में दान कर देते थे। 2022 में, हिसार के गांव मंगाली की गोशाला में कथा के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी उनके आशीर्वाद के लिए पहुंचे थे।


राजनीतिक प्रतिक्रिया

भाजपा नेता और पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई ने स्वामी राजेंद्रानंद के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनका अचानक निधन एक अपूरणीय क्षति है।


स्वामी राजेंद्रानंद ने 9 जून को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी, जिसमें उन्होंने बिश्नोई समाज के लिए ओबीसी आरक्षण की मांग की थी।