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बैकुंठ एकादशी पर रंगनाथ मंदिर में खोला गया बैकुंठ द्वार

मथुरा के रंगनाथ मंदिर में बैकुंठ एकादशी के अवसर पर बैकुंठ द्वार खोला गया, जहां लाखों भक्तों ने भगवान के दर्शन किए। इस विशेष दिन की मान्यता है कि जो भक्त इस द्वार से निकलता है, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। उत्सव की शुरुआत भगवान रंगनाथ की आरती से हुई, और भक्तों ने पारंपरिक भजनों के साथ इस अवसर को मनाया। मंदिर प्रबंधन ने श्रद्धालुओं के लिए सुरक्षा और सर्दी से राहत के लिए विशेष इंतजाम किए। जानें इस धार्मिक उत्सव की और भी खास बातें।
 

बैकुंठ एकादशी का उत्सव

मथुरा: उत्तर भारत के सबसे बड़े दक्षिण शैली के रंगनाथ मंदिर में मंगलवार को बैकुंठ एकादशी के अवसर पर बैकुंठ द्वार खोला गया। यह द्वार साल में केवल एक बार खुलता है, और इस अवसर पर भगवान ने भक्तों को दर्शन दिए। मान्यता है कि जो भक्त इस द्वार से निकलता है, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। बैकुंठ उत्सव की शुरुआत भगवान रंगनाथ की मंगला आरती से हुई, जिसके बाद सुबह ब्रह्म मुहूर्त में भगवान माता गोदा जी के साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि के बीच अपने मंदिर से पालकी में विराजमान होकर बैकुंठ द्वार पहुंचे। यहां भगवान रंगनाथ की पालकी लगभग आधे घंटे तक द्वार पर खड़ी रही।


जब भगवान रंगनाथ की सवारी बैकुंठ द्वार पर पहुंची, तो मंदिर के महंत गोवर्धन रंगाचार्य के नेतृत्व में सेवायत पुजारियों ने पाठ किया। करीब आधे घंटे तक चले पाठ और अर्चना के बाद भगवान रंगनाथ, शठ कोप स्वामी, नाथ मुनि स्वामी और आलवर संतों की कुंभ आरती की गई। वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच पूजा-पाठ के बाद भगवान रंगनाथ की सवारी मंदिर प्रांगण में भ्रमण करने के बाद पौंडानाथ मंदिर में विराजमान हुई, जिसे भगवान का निज धाम बैकुंठ लोक माना जाता है। यहां मंदिर के लोगों ने भगवान को भजन गाकर सुनाए।


बैकुंठ द्वार से निकलने की इच्छा में लाखों भक्त रात से ही मंदिर परिसर में एकत्रित होना शुरू हो गए। मंदिर के पुजारी स्वामी राजू ने बताया कि 21 दिवसीय बैकुंठ उत्सव में 11वें दिन बैकुंठ एकादशी पर्व पर बैकुंठ द्वार खोला जाता है। यह एकादशी वर्ष की सर्वश्रेष्ठ एकादशियों में से एक मानी जाती है। मान्यता है कि बैकुंठ एकादशी पर जो भक्त बैकुंठ द्वार से निकलता है, उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।


मंदिर की मुख्य कार्यकारी अधिकारी अनघा श्री निवासन ने बताया कि अलवार आचार्य बैकुंठ उत्सव के दौरान अपनी रचित गाथाएं भगवान को सुनाते हैं। बैकुंठ एकादशी के दिन दक्षिण के सभी वैष्णव मंदिरों में बैकुंठ द्वार ब्रह्म मुहूर्त में खुलता है। इसी परंपरा का पालन वृंदावन स्थित रंगनाथ मंदिर में किया जाता है। वर्ष में एक बार खुलने वाले बैकुंठ द्वार को सजाने के लिए लगभग एक हजार किलो से अधिक विभिन्न प्रजातियों के फूल वृंदावन, दिल्ली और बैंगलोर से मंगाए गए। इसके साथ ही बैकुंठ लोक में की गई लाइटिंग ने ऐसा अहसास कराया जैसे भगवान बैकुंठ धाम में विराजमान हों। बैकुंठ एकादशी के अवसर पर भगवान रंगनाथ के दर्शन कर भक्त आनंदित हो उठे।


बैकुंठ एकादशी पर बैकुंठ द्वार खुलने की मान्यता है कि दक्षिण भारत के अलवार संतों ने भगवान नारायण से जीवात्मा के उनके निज बैकुंठ जाने के रास्ते के बारे में पूछा। भगवान ने बैकुंठ एकादशी के दिन बैकुंठ द्वार से निकलने की लीला दिखाई। यह परंपरा आज भी श्री रंगनाथ मंदिर में पारंपरिक नियमों के अनुसार मनाई जा रही है।


रंगनाथ मंदिर में खुले बैकुंठ द्वार से निकलने और भगवान के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। लाखों की संख्या में आई भीड़ को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए। सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी सीओ सदर संदीप सिंह, कोतवाली प्रभारी संजय पांडे और निरीक्षक क्राइम धर्मेंद्र कुमार ने संभाली।


बैकुंठ उत्सव के दौरान मंदिर प्रबंधन ने श्रद्धालुओं को सर्दी से राहत देने के लिए बेहतर इंतजाम किए। रास्ते में मैट बिछवाए गए और जगह-जगह अलाव भी रखवाए गए। देर शाम से ही पहुंचे भक्तों के लिए चाय, दूध और हलवा प्रसाद की व्यवस्था की गई। इस दौरान पुरोहित विजय मिश्र, गोविंद मिश्र, रघुनाथ स्वामी, राजू स्वामी, साधना कुलश्रेष्ठ, राजू सक्सेना, कमलेश राठौर, पंकज शर्मा, लखन लाल पाठक, जुगल किशोर, रविंद्र विश्वास, अमित, अर्जुन आदि उपस्थित रहे।