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ब्रह्मपुत्र नदी: एक अनोखी पहचान और धार्मिक महत्व

ब्रह्मपुत्र नदी, जो भारत की एकमात्र पुरुष नदी मानी जाती है, अपने अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यह नदी हर साल कुछ दिनों के लिए लाल रंग में बदल जाती है, जिसका कारण धार्मिक मान्यताएँ और वैज्ञानिक तथ्यों का मिश्रण है। असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर इस घटना का केंद्र है। जानें इस नदी की विशेषताओं और इसके पीछे की रहस्यमय कहानियों के बारे में।
 

ब्रह्मपुत्र नदी का अद्वितीय स्थान

भारत की अधिकांश नदियों को स्त्रीलिंग के रूप में जाना जाता है, लेकिन ब्रह्मपुत्र नदी इस नियम से अलग है, जिसे पुरुष नदी के रूप में मान्यता प्राप्त है। यह नदी न केवल भारत में, बल्कि पूरे एशिया में अपनी लंबाई और विशेषताओं के लिए जानी जाती है। हिमालय की ऊँचाइयों से निकलकर बंगाल की खाड़ी तक बहने वाली इस नदी का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व अत्यधिक गहरा है।
ब्राह्मणों के साथ-साथ जैन और बौद्ध धर्मों में भी ब्रह्मपुत्र का एक विशेष स्थान है। इसकी विशालता और पवित्रता के कारण इसे एक विशेष दर्जा प्राप्त है। लेकिन जो चीज इसे और भी रहस्यमय बनाती है, वह है इसका हर साल कुछ दिनों के लिए लाल रंग में बदल जाना।
असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर इस प्राकृतिक घटना के पीछे की सबसे प्रसिद्ध धार्मिक मान्यता है। यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है, जहां माता सती के योनि भाग के गिरने की कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि देवी कामाख्या को साल में एक बार मासिक धर्म होता है, और उसी समय ब्रह्मपुत्र नदी का जल तीन दिनों तक लाल हो जाता है।
यह घटना आषाढ़ महीने में होती है, जो आमतौर पर जून के आसपास आता है। इस दौरान मंदिर तीन दिनों के लिए बंद रहता है और स्थानीय लोग इसे एक पवित्र और चमत्कारिक समय मानते हैं। धार्मिक दृष्टिकोण से, देवी के मासिक धर्म के समय बहता हुआ रक्त ही इस नदी के जल को लाल रंग प्रदान करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, ब्रह्मपुत्र नदी का लाल होना क्षेत्र की मिट्टी में पाए जाने वाले लौह तत्वों के कारण होता है। असम और अरुणाचल प्रदेश की मिट्टी में लाल और पीली तलछट की अधिकता के चलते नदी का जल लाल हो जाता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया हर साल दोहराती है, जिससे यह नदी और भी खास बन जाती है।
ब्राह्मणों के अनुसार, ब्रह्मपुत्र नदी को भगवान ब्रह्मा का पुत्र माना जाता है, और असम तथा अरुणाचल प्रदेश में इसे देवता के रूप में पूजा जाता है। इसकी अनोखी पहचान और धार्मिक महत्व इसे न केवल एक नदी बल्कि एक पवित्र प्रतीक बनाता है।