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भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा रथयात्रा 2025: दैत्यपतियों की महत्वपूर्ण भूमिका

भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा रथयात्रा 2025 के लिए पुरी में तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। इस विशेष अवसर पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर लाया जाएगा। दैत्यपतियों की महत्वपूर्ण भूमिका और उनकी सेवा के बारे में जानें। रथयात्रा के दौरान होने वाली रस्में और विशेष मिठाई पोड़ा पीठा के बारे में भी जानकारी प्राप्त करें।
 

भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा रथयात्रा की तैयारी

Rath Yatra 2025: भगवान जगन्नाथ की बाहुड़ा रथयात्रा के लिए पुरी में सभी तैयारियाँ पूरी हो चुकी हैं। आज धूमधाम से भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को गुंडिचा मंदिर से वापस श्रीमंदिर लाया जाएगा। रथयात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ अपने जन्मस्थान पर कुछ समय बिताते हैं, जहाँ वे अपने बचपन की यादों में खो जाते हैं और मौसी का प्यार प्राप्त करते हैं। इस सेवा में पंडा, महापंडा और कई दैत्यपति शामिल होते हैं।


दैत्यपति कौन होते हैं?

भगवान जगन्नाथ की सेवा में दैत्यपतियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये सेवक हमेशा रथ और मंदिर में उपस्थित रहते हैं ताकि प्रभु की सेवा कर सकें। रथयात्रा के दौरान, ये लोग देवताओं की मूर्तियों को मंदिर से बाहर लाते हैं और रथ पर ले जाते हैं। ये प्रभु की सुरक्षा और सजावट का ध्यान रखते हैं और रथ यात्रा के दौरान कई रस्में भी निभाते हैं। इन्हें भगवान के अंगरक्षक या शाही सेवक कहा जाता है और अपनी सेवा के लिए इन्हें शुल्क भी मिलता है।


सेवा की आयु

श्रीमंदिर के प्रमुख दैत्यपति जगन्नाथ स्वाइन महापात्रा बताते हैं कि उन्हें बचपन से ही भगवान जगन्नाथ की सेवा में लगना होता है। उनके परिवार के सभी पुरुष इस सेवा में लगे होते हैं। रथयात्रा के दिन से इनकी सेवा शुरू होती है। दैत्यपति बताते हैं कि उनकी सेवा जन्म के समय से ही शुरू होती है। यदि कोई एक महीने का बच्चा भी हो, तो उसे रथ पर ले जाकर सेवा करवाई जाती है। उनकी पहली सेवा करने पर उन्हें पचास रुपये की दक्षिणा दी जाती है।


हर छोटे-बड़े कामों में शामिल

दैत्यपति बताते हैं कि वे भगवान जगन्नाथ की सेवा में हर रस्म में शामिल होते हैं। जब प्रभु बीमार होते हैं, तो उनकी चिकित्सा में भी ये लोग सहायता करते हैं। जिस वर्ष भगवान जगन्नाथ का नवकल वर्ष होता है, उस समय ये पुरानी मूर्तियों के समापन और नई मूर्तियों के लिए लकड़ी की तलाश में जुटे रहते हैं।


बाहुड़ा रथयात्रा में विशेष मिठाई

जब भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर से लौटते हैं, तो रास्ते में भूख न लगे, इसके लिए मौसी बलभद्र को पोड़ा पीठा देती हैं। यह मिठाई भगवान बलभद्र की पसंदीदा होती है और इसे भोग लगाने से वे प्रसन्न होते हैं। पोड़ा पीठा ओडिशा के पारंपरिक व्यंजनों में से एक है।


बाहुड़ा रथयात्रा के बाद की रस्में

  • सुना बेश- 6 जुलाई, 2025
  • अदार पना- 7 जुलाई, 2025
  • निलाद्री बिजे- 8 जुलाई, 2025