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भगवान श्रीराम की कथा: दिव्यता और मानवता का संगम

भगवान श्रीराम की कथा, जो भगवान शंकर के श्रीमुख से प्रकट हुई, न केवल पवित्र है बल्कि मानवता के लिए एक मार्गदर्शक भी है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे देवी पार्वती ने श्रीराम के मानव रूप को समझा और उनके दिव्य स्वरूप का महत्व क्या है। यह कथा न केवल भक्तों के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि समाज में व्याप्त भ्रांतियों का भी समाधान करती है।
 

भगवान श्रीराम की कथा का महत्व

भगवान शंकर के श्रीमुख से प्रकट होने वाली श्रीरामकथा अत्यंत पवित्र, अमृतमयी और अनंत रत्नों से भरी हुई है। इस कथा के हर वचन से दिव्य ज्ञान और भक्ति का प्रकाश फैलता है। इस दिव्य कथा की प्रमुख श्रोता जगजननी पार्वती हैं, जो इसे केवल अपने आत्मकल्याण के लिए नहीं, बल्कि समस्त सृष्टि के कल्याण के लिए सुन रही हैं।


शंका का समाधान

समाज में अक्सर यह प्रश्न उठता है—क्या सम्पूर्ण ब्रह्म ही श्रीराम के रूप में प्रकट हुए, या वे केवल अयोध्यापति दशरथ के पुत्र थे? एक वर्ग आज भी उन्हें साधारण मानव सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है। यह भ्रांति मानवता के लिए अज्ञान का कारण बनती है।


भोलेनाथ का उत्तर

इस शंका का समाधान स्वयं भगवान शंकर करते हैं। वे देवी पार्वती से कहते हैं—


“जेहि इमि गावहिं बेद बुध, जाहि धरहिं मुनि ध्यान।


सोइ दसरथ सुत भगत हित, कोसलपति भगवान।।’’


अर्थात जिनका गुणगान वेद और मनीषी करते हैं, वही दशरथनन्दन, भक्तों के हितकारी, अयोध्या के अधिपति भगवान श्रीराम हैं।


श्रीरामचरितमानस का महत्व

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस केवल एक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानव जीवन का दर्पण और धर्म का जीवंत शास्त्र है। इसमें हर प्रश्न का उत्तर, हर संशय का समाधान और हर साधक के लिए मार्गदर्शन है। यही कारण है कि अधर्मी विचारधारा वाले लोग इसे सामान्य जन से दूर रखने का प्रयास करते हैं।


सूर्पणखा प्रसंग की सच्चाई

वास्तव में, सूर्पणखा अपने पति के दाह संस्कार के लिए लकड़ियाँ बीनने आई थी। लेकिन उसके मन में वासना का ज्वर उत्पन्न हुआ और उसने श्रीराम को पति के रूप में पाने का आग्रह किया। श्रीराम ने धैर्य से उसे समझाया कि वे पहले से ही विवाह बंधन में बंधे हैं।


श्रीराम का तत्वज्ञान

श्रीराम को समझना केवल तर्क-वितर्क से संभव नहीं है। उनके वास्तविक स्वरूप का बोध तभी होता है जब साधक किसी ब्रह्मज्ञानी योगी की शरण में जाए। भगवान शंकर ऐसे ही महायोगी हैं।


पार्वती का प्रश्न

जब पार्वती जी का मन श्रीराम के प्रति प्रेम और श्रद्धा से भर गया, तब उन्होंने एक गंभीर प्रश्न पूछा—


“नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू।


मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू।।’’


हे प्रभो! श्रीराम ने मानव शरीर किस कारण धारण किया? कृपया मुझे बताइए।


समापन

यह प्रश्न केवल पार्वती जी का नहीं, बल्कि सभी भक्तों का प्रश्न है। क्योंकि हर साधक के मन में यह विचार उठता है कि यदि भगवान सर्वशक्तिमान हैं, तो उन्हें मानव-शरीर धारण करने की आवश्यकता क्यों पड़ी?


--क्रमशः


- सुखी भारती