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भारत के तिरंगे का इतिहास: 79वें स्वतंत्रता दिवस पर जानें इसकी कहानी

भारत के तिरंगे का इतिहास एक प्रेरणादायक यात्रा है, जो 1906 से शुरू होकर आज तक फैली हुई है। इस लेख में, हम तिरंगे के रंगों, उनके महत्व और पिंगली वेंकैया की भूमिका के बारे में जानेंगे। 79वें स्वतंत्रता दिवस पर, आइए इस ध्वज की कहानी को समझें और इसके पीछे की प्रेरणा को जानें। तिरंगे का सफर, जो स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक का है, हमें गर्वित करता है।
 

79वां स्वतंत्रता दिवस: तिरंगे का महत्व

79वां स्वतंत्रता दिवस: भारत का राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगा, तीन रंगों की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग के 24 तीलियों वाले चक्र के साथ आता है। सबसे ऊपर की केसरिया पट्टी देश की शक्ति और साहस का प्रतीक है, जबकि मध्य की सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतिनिधित्व करती है। नीचे की गहरी हरी पट्टी देश की समृद्धि और विकास को दर्शाती है। ध्वज का अनुपात 3:2 होता है और इसे खादी से बनाया जाना चाहिए। तिरंगे की डिजाइन का श्रेय आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया को दिया जाता है, जो एक कृषि वैज्ञानिक थे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से शामिल रहे। भारत का तिरंगा 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया था।


राष्ट्रीय ध्वज का सफर: 1906 से आज तक

1906 से शुरू हुआ राष्ट्रीय ध्वज का सफर


स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने 1906 में पहला राष्ट्रीय ध्वज बनाया। 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता में कांग्रेस के अधिवेशन में इसे पहली बार फहराया गया। इस ध्वज में लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियाँ थीं, जिसमें हरी पट्टी में 8 कमल और लाल पट्टी में सूरज और चाँद का चित्रण था। बीच की पीली पट्टी पर 'वन्देमातरम्' लिखा था। 1907 में ध्वज में बदलाव किया गया, जिसमें कमल की जगह 7 तारे बनाए गए, जो सप्तऋषियों का प्रतीक थे। यह ध्वज बर्लिन में हुए समाजवादी सम्मेलन में भी प्रदर्शित किया गया।


1917 में ध्वज में महत्वपूर्ण परिवर्तन

1917 में बड़ा बदलाव


राजनीतिक संघर्षों के चलते 1917 में डॉ. एनी बीसेंट और लोकमान्य तिलक ने घरेलू शासन आंदोलन के दौरान एक नया ध्वज फहराया। इसमें 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियाँ थीं, जिन पर 7 सितारे बने थे। ध्वज के ऊपरी किनारे पर बायीं ओर यूनियन जैक था। इसके बाद 1931 में ध्वज के रंगों का स्थान बदलकर चरखा को बीच में लाया गया, और बाद में जालंधर के हंसराज के सुझाव पर चक्र को शामिल किया गया।


पिंगली वेंकैया की रिसर्च

पिंगली ने 30 देशों पर की थी रिसर्च


भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन के दौरान, वेंकैया पिंगली ने भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता को रेखांकित किया। महात्मा गांधी ने इस विचार को सराहा और पिंगली को ध्वज का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए कहा। इसके लिए पिंगली ने 30 देशों के ध्वजों का अध्ययन किया, जिसमें उन्हें 5 साल का समय लगा। यह ध्वज लाल और हरे रंग का था, जो हिंदू और मुस्लिम समुदायों का प्रतिनिधित्व करता था। गांधी जी के कहने पर ध्वज में एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का प्रतीक चरखा जोड़ा गया।


तिरंगे का आधिकारिक अपनाना

आजादी से पहले अपनाया गया तिरंगा


1921 में विजयवाड़ा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में वेंकैया पिंगली ने झंडा प्रस्तुत किया, जो लाल और हरे रंग का था। यह झंडा कांग्रेस के सभी अधिवेशनों में प्रयोग किया जाने लगा, हालांकि इसे आधिकारिक मान्यता नहीं मिली थी। जालंधर के हंसराज ने झंडे में चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया, जिसे प्रगति और आम आदमी का प्रतीक माना गया। अंततः, संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया, और 15 अगस्त को स्वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंगों और उनके महत्व को बनाए रखा गया।