×

मातृ नवमी श्राद्ध: पितृपक्ष में विशेष महत्व और उपाय

पितृपक्ष का समय हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दौरान मातृ नवमी श्राद्ध का आयोजन किया जाता है, जो मृत माताओं की आत्मा की शांति के लिए समर्पित है। इस लेख में हम मातृ नवमी के तर्पण का शुभ मुहूर्त और इसे करने के उपायों के बारे में जानेंगे। जानें कैसे आप इस दिन विशेष पूजा और दान करके माताओं की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
 

पितृपक्ष का महत्व

पितृपक्ष का आयोजन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन महीने की अमावस्या तक चलता है, जो कुल 15 दिनों का होता है। हिंदू धर्म में इस समय का विशेष महत्व है। इस अवधि में लोग अपने पूर्वजों, मृत माता-पिता, दादा-दादी की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करते हैं। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि मृत माताओं को समर्पित होती है। इस दिन उनके श्राद्ध, तर्पण और पिडदान का आयोजन किया जाता है। इन क्रियाओं से व्यक्ति को जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है और मृत माताओं की कृपा प्राप्त होती है। कल, यानी 15 सितंबर को मातृ नवमी श्राद्ध का आयोजन होगा। आइए जानते हैं मातृ नवमी श्राद्ध के उपाय।


तर्पण का शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि पर तर्पण का कुतुप मुहूर्त सुबह 11:51 से 12:41 बजे तक है। इसके बाद रौहिण मुहूर्त 12:41 से 1:30 बजे तक रहेगा। अपराह्न काल में तर्पण का समय 1:30 से 3:58 बजे तक है।


मातृ नवमी के उपाय

- मृत माताओं की कृपा पाने के लिए तुलसी माता की पूजा करें। उन्हें जल अर्पित करें और शाम को तुलसी माता की आरती करें। तुलसी के समक्ष दीपक जलाना भी शुभ होता है।


- इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा अवश्य करें। पीपल के नीचे दीपक जलाना और काले तिल मिश्रित जल से अर्घ्य देना भी लाभकारी होता है।


- मातृ नवमी के अवसर पर जरूरतमंद महिलाओं को सुहाग का सामान दान करें।


- इस दिन जरूरतमंदों को भोजन कराना भी महत्वपूर्ण है। आप अपनी सामर्थ्यानुसार अन्नदान कर सकते हैं।