वराह जयन्ती: भगवान विष्णु के अवतार का महत्व और पूजा विधि
वराह जयन्ती भगवान विष्णु के वराह अवतार का पर्व है, जो भाद्रपद मास की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान ने पृथ्वी को हिरण्याक्ष नामक दैत्य से मुक्त किया था। जानें इस पर्व की पूजा विधि, पौराणिक कथा और इसके दार्शनिक संदेश के बारे में। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि पृथ्वी और पर्यावरण की रक्षा का भी संकल्प लेने का अवसर है।
Aug 25, 2025, 11:24 IST
वराह जयन्ती का महत्व
वराह जयन्ती भगवान विष्णु के तीसरे अवतार वराह के प्रकट होने के दिन के रूप में मनाई जाती है। यह पर्व भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने वराह (सूकर) का रूप धारण कर पृथ्वी को हिरण्याक्ष नामक दैत्य से मुक्त किया था।
पौराणिक कथा
पुराणों में वर्णित है कि हिरण्याक्ष नामक असुर ने पृथ्वी को पाताल लोक में ले जाकर समुद्र में डुबो दिया था। इससे सृष्टि का संतुलन बिगड़ गया और देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण कर अपने दांतों पर पृथ्वी को उठाया और असुर का वध कर उसे पुनः उसके स्थान पर स्थापित किया। इस प्रकार, भगवान वराह ने धरती को विनाश से बचाया।
पूजन विधि
वराह जयन्ती के दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है।
घर या मंदिर में भगवान विष्णु और वराह अवतार की प्रतिमा या चित्र स्थापित कर पूजा की जाती है।
पूजा में तुलसी पत्र, पीले पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
व्रत रखने वाले दिनभर उपवास करते हैं और रात्रि में कथा श्रवण व भजन-कीर्तन किया जाता है।
अगले दिन ब्राह्मण या जरूरतमंदों को दान देकर व्रत का समापन होता है।
वराह अवतार का संदेश
वराह अवतार यह दर्शाता है कि जब भी धरती या धर्म संकट में होते हैं, भगवान स्वयं अवतार लेकर उनकी रक्षा करते हैं। यह पर्व हमें सिखाता है कि धर्म, सत्य और न्याय की रक्षा के लिए भगवान सदैव उपस्थित रहते हैं।
वराह जयन्ती केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि पर्यावरण और पृथ्वी संरक्षण के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन श्रद्धालु भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा कर पृथ्वी माता की रक्षा का संकल्प लेते हैं। यह पर्व हमें यह सिखाता है कि पृथ्वी हमारी माता है और उसकी रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है।