विवाह पंचमी: श्रीराम और सीता का पवित्र बंधन
विवाह पंचमी का महत्व
मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को भगवान श्रीराम और जानकी (सीता) का विवाह होने के कारण इसे विवाह पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन की महत्ता को देखते हुए, भारत में इसे बड़े धूमधाम से मनाने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। इस दिन श्रीराम के साथ लक्ष्मण, भरत और शत्रुध्न का विवाह क्रमशः सीता, उर्मिला, मांडवी और श्रुतिकीर्ति के साथ हुआ था।
श्रीराम का आदर्श जीवन
भारतीय संस्कृति में श्रीराम को पुत्र, पति, भाई और राजा के रूप में आदर्श माना जाता है। उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं और मर्यादित व्यवहार के कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है। श्रीराम और सीता का विवाह मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को हुआ, जो भारतीय परंपरा में आदर्श जोड़ी के रूप में देखा जाता है।
विवाह का प्रतीक
भगवान श्रीराम और सीता का विवाह त्रेतायुग की एक महत्वपूर्ण घटना है। यह विवाह धैर्य और संघर्ष का प्रतीक है, जो रावण के वध की ओर अग्रसर होने का संकेत देता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने सीता का वरण किया और उनके माथे पर सिंदूर का तिलक लगाया।
स्वयंवर की कथा
सीता के स्वयंवर में भगवान राम ने शिव धनुष को तोड़कर विवाह किया। यह घटना इस बात का प्रतीक है कि विवाह में अहंकार को छोड़कर प्रेम से बंधना चाहिए। श्रीराम-सीता का विवाह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दांपत्य जीवन में प्रेम और समर्पण का संदेश देता है।
धार्मिक आयोजन
विवाह पंचमी के दिन विभिन्न धार्मिक आयोजन होते हैं, विशेषकर मिथिलांचल और अयोध्या में। इस दिन सभी दंपतियों को श्रीराम-सीता से प्रेरणा लेकर अपने दांपत्य जीवन को मधुर बनाने का संकल्प लेना चाहिए।
सीता का जन्म और विवाह
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सीता का जन्म राजा जनक की भूमि से हुआ था। जब राजा जनक ने भूमि जोतते समय एक कन्या को पाया, तब उन्होंने उसका नाम सीता रखा। सीता के स्वयंवर में श्रीराम ने धनुष तोड़कर विवाह किया, जो इस बात का प्रतीक है कि सच्चे प्रेम के लिए समर्पण आवश्यक है।
विवाह पंचमी का महत्व
श्रीराम और सीता के विवाह की स्मृति में हर साल अगहन मास की शुक्ल पंचमी को विशेष उत्सव मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम की पूजा करने से जीवन में सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। विवाह पंचमी का दिन केवल दांपत्य जीवन का आरंभ नहीं, बल्कि जीवन को संपूर्णता देने का अवसर भी है।