व्यभिचार के दंड: शास्त्रों में भयानक सजाएं
व्यभिचार का गंभीर पाप
हिंदू धर्म में विवाह केवल एक सामाजिक बंधन नहीं है, बल्कि इसे सात जन्मों का पवित्र वचन माना जाता है। पति और पत्नी एक-दूसरे के प्रति निष्ठा और विश्वास का संकल्प लेते हैं। लेकिन जब कोई इस रिश्ते को तोड़कर व्यभिचार करता है, तो इसे शास्त्रों में एक गंभीर पाप माना गया है। गरुड़ पुराण और पद्म पुराण में इस विषय पर विस्तार से बताया गया है कि ऐसे व्यक्तियों को मृत्यु के बाद और अगले जन्म में किस प्रकार की भयानक यातनाएं भोगनी पड़ती हैं।
गरुड़ पुराण में दंड का वर्णन
गरुड़ पुराण के अनुसार, जो लोग अपने जीवनसाथी को धोखा देते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद उन लोकों में भेजा जाता है जहाँ उन्हें अपने कर्मों का कठोर फल भोगना पड़ता है।
नरकों की भयानक यातनाएं
तप्तसूर्मी नरक में आत्मा को गर्म लोहे की सुइयों से छेड़ा जाता है।
कृमिभोज्य नरक में कीड़े-मकोड़े आत्मा को खाते हैं।
अंधतामिस्र नरक में घोर अंधेरे में कांटों पर चलाया जाता है।
वज्रदंश नरक में लोहे के दांत वाले जीव शरीर का मांस चबाते हैं।
इन यातनाओं का समय लाखों वर्षों तक चल सकता है, जब तक पाप समाप्त न हो जाए।
अगले जन्म की कठोर परिणति
व्यभिचारी व्यक्ति अगले जन्म में काना, लंगड़ा, गूंगा, कोढ़ी या अंधा बनकर जन्म ले सकता है। कभी-कभी दरिद्र या दास-दासी के रूप में भी जन्म लेना पड़ता है।
सांप, कुत्ता, सुअर या कीड़े की योनि भी मिल सकती है।
स्त्री रूप में जन्म लेने पर विधवा, बांझ या रोगग्रस्त जीवन जीना पड़ता है। कई जन्मों तक वैवाहिक सुख नहीं मिलता।
विष्णु पुराण का संदेश
विष्णु पुराण के अनुसार, व्यभिचार करने वालों को मृत्यु के बाद असीपत्र वन में भेजा जाता है, जहाँ आत्मा अपने पापों के अनुसार कठोर पीड़ा झेलती है।
यह दर्शाता है कि विश्वासघात आत्मा पर भारी बोझ डालता है, और मृत्यु के बाद आत्मा को उसे उतारने का अवसर मिलता है।
पद्म पुराण की चेतावनी
पद्म पुराण में कहा गया है कि पति या पत्नी को छोड़कर परस्त्री या परपुरुष के साथ रहने वालों को अगले जन्म में कुक्कुट या श्वयोनि मिलती है, क्योंकि ये प्राणी व्यभिचार के प्रतीक माने गए हैं।
इन योनियों में जीवन दुख, हिंसा और कष्टों से भरा होता है।
पद्म पुराण बताता है कि विश्वासघात व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति को कई जन्मों तक रोक देता है।
कई जन्मों तक चलने वाला अभिशाप
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जो पति-पत्नी एक-दूसरे को धोखा देते हैं, उन्हें अगले जन्मों में ऐसे रिश्तों में जन्म मिलता है जहाँ वे एक-दूसरे से घृणा करते हैं।
कई जन्मों तक वैवाहिक सुख, संतान सुख और परिवारिक शांति नहीं मिलती।
प्रायश्चित का मार्ग
शास्त्र केवल दंड ही नहीं, सुधार का मार्ग भी बताते हैं।
यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से पश्चाताप करे, ईमानदारी से गलती स्वीकार करे और धर्म के अनुसार प्रायश्चित करे, तो वह जीवन में संतुलन वापस पा सकता है।
जीवनसाथी से क्षमा मांगे, दान करें और आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ें। भगवान विष्णु और भगवान शिव की स्तुति करें और आगे का जीवन ईमानदारी से जीएं।
सूचना
यह जानकारी शास्त्रों पर आधारित है और केवल सूचना के उद्देश्य से दी जा रही है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते।