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शनि प्रदोष व्रत: भगवान शिव की पूजा का महत्व और कथा

18 अक्टूबर 2025 को मनाए जाने वाले शनि प्रदोष व्रत का महत्व जानें। इस दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में की जाती है। जानें इस व्रत की कथा, जिसमें एक सेठ और उनकी पत्नी की संतान सुख की प्राप्ति की कहानी है। यह व्रत कैसे सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देता है, जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

शनि प्रदोष व्रत: आज, 18 अक्टूबर 2025 को कार्तिक मास का प्रदोष व्रत मनाया जा रहा है। चूंकि यह दिन शनिवार को है, इसे शनि प्रदोष व्रत कहा जाता है।


इस विशेष दिन भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त से 45 मिनट पहले शुरू होकर 45 मिनट बाद तक चलती है। इस समय पूजा का विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत की पूजा बिना व्रत कथा के अधूरी मानी जाती है। आइए, शनि प्रदोष व्रत की कथा पढ़ते हैं और जानते हैं कि यह व्रत कैसे सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देता है।


शनि प्रदोष व्रत की कथा

कार्तिक शनि प्रदोष व्रत कथा


प्राचीन समय में एक समृद्ध सेठ और उनकी पत्नी रहते थे। उनके पास सभी सुख-सुविधाएं थीं, लेकिन संतान सुख की कमी के कारण वे हमेशा दुखी रहते थे।


काफी विचार करने के बाद, सेठ ने अपने सभी कार्य नौकरों को सौंप दिए और अपनी पत्नी के साथ तीर्थ यात्रा पर निकल पड़े। नगर से बाहर जाते समय उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यान में मग्न थे। सेठ और उनकी पत्नी ने आशीर्वाद पाने की इच्छा से साधु के पास बैठकर प्रतीक्षा की।


जब साधु ने अपनी आंखें खोलीं, तो उन्होंने सेठ दंपति के दुख को समझ लिया। साधु ने कहा, "मैं तुम्हारा दुख जानता हूं। संतान सुख के लिए शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हारी मनोकामना पूरी होगी।" इसके बाद साधु ने उन्हें प्रदोष व्रत की विधि और भगवान शिव की विशेष पूजा का तरीका बताया।


सेठ और सेठानी ने साधु का आशीर्वाद लिया और तीर्थ यात्रा पूरी करने के बाद शनि प्रदोष व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से कुछ समय बाद उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ, और उनका जीवन खुशियों से भर गया।