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शनि प्रदोष व्रत: महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जिसमें भगवान शिव, मां पार्वती और शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है। इस व्रत से शनि दोषों से मुक्ति और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। जानें इस व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और मंत्र, जो आपके जीवन में सकारात्मकता लाने में मदद कर सकते हैं।
 

प्रदोष व्रत का महत्व

हर महीने की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान शिव, मां पार्वती और न्याय तथा कर्म के देवता शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि प्रदोष व्रत करने से शनि की साढ़ेसाती, ढैय्या और अन्य शनि दोषों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही भगवान शिव और मां पार्वती की कृपा भी प्राप्त होती है। इस व्रत के माध्यम से जातक के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है, और सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। आइए जानते हैं शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसके महत्व के बारे में...


शुभ मुहूर्त

अक्तूबर महीने में पहला प्रदोष व्रत 04 अक्तूबर, शनिवार को है। पंचांग के अनुसार, शाम 05:10 बजे त्रयोदशी तिथि शुरू होगी, जो अगले दिन 05 अक्तूबर को शाम 03:04 बजे तक रहेगी। उदयातिथि के अनुसार, 04 अक्तूबर को शनि प्रदोष का व्रत किया जाएगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06:10 से 07:45 बजे तक रहेगा।


पूजन विधि

प्रदोष व्रत की पूजा हमेशा प्रदोष काल, यानी सूर्यास्त के बाद की जाती है। सबसे पहले, पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें और फिर साफ कपड़े पहनें। पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान शिव का जल, गंगाजल या पंचामृत से अभिषेक करें। शिवलिंग पर चंदन, धतूरा, बिल्व पत्र, भांग और मदार के फूल अर्पित करें।


इसके बाद मां पार्वती और भगवान गणेश की विधि-विधान से पूजा करें। धूप-दीप करें और शिव मंत्रों का रुद्राक्ष माला से जाप करें। प्रदोष व्रत कथा का पाठ करें और अंत में भगवान शिव और मां पार्वती की आरती करें। शिव पूजन के बाद पीपल के पेड़ के नीचे या शनि मंदिर में सरसों के तेल का दीपक जलाएं और शनिदेव को काले तिल और तेल चढ़ाएं।


मंत्र

ॐ नमः शिवाय।


ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।


उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥