शिवरक्षा स्तोत्र: सोमवार को करें विशेष पूजा
सभी बाधाओं का निवारण
दूर होगी सभी बाधाएं
पौष मास सूर्य की उपासना का समय है। इस महीने में यदि देवताओं की पूजा सही तरीके से की जाए तो विशेष लाभ प्राप्त होता है। पौष माह का सोमवार अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष आराधना करनी चाहिए। इस दिन शिवलिंग पर दूध, जल, पंचामृत का अभिषेक, बेलपत्र और धतूरा चढ़ाना, तथा 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करना शुभ माना जाता है, जिससे सभी बाधाएं समाप्त होती हैं और सुख-समृद्धि आती है।
पौष माह के सोमवार की पूजा विधि
- सुबह की तैयारी: ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और सफेद वस्त्र पहनें। इस दिन भगवान शिव का ध्यान करते हुए स्नान करें।
- संकल्प लें: व्रत का संकल्प लें और अपनी इच्छाएं व्यक्त करें।
- शिवलिंग अभिषेक: घर के मंदिर या शिव मंदिर में शिवलिंग पर पहले जल, फिर कच्चा दूध और अंत में जल चढ़ाएं (पंचामृत से भी अभिषेक कर सकते हैं)।
- मंत्र जाप: 'ॐ नम: शिवाय', 'ॐ महेश्वराय नम:', 'ॐ शंकराय नम:' जैसे मंत्रों का जाप करें।
- वस्त्र और श्रृंगार: कलावा (मौली) अर्पित करें और चंदन का तिलक लगाएं।
- भोग: बेलपत्र, धतूरा, चावल, फूल और मौसमी फल चढ़ाएं।
- आरती: धूप, दीप और कपूर से आरती करें, शिव चालीसा या शिव कथा का पाठ करें।
- प्रसाद वितरण: प्रसाद (मिठाई, फल) परिवार में बांटें और व्रत का पालन करें।
पौष माह में क्या करें और क्या न करें
- करें: सूर्य और शिव पूजा, पितरों का तर्पण, दान-पुण्य, सात्विक भोजन, जप-तप।
- न करें: मांसाहार, शराब, बैंगन, मूली, मसूर दाल, उड़द दाल और फूलगोभी का सेवन।
पौष माह सोमवार का महत्व
यह महीना आध्यात्मिक साधना और अनुशासन के लिए उत्तम है। सोमवार को शिव पूजा से मनचाहा जीवनसाथी मिलता है और कुंडली दोष दूर होते हैं। इस माह के सोमवार पर शिवरक्षा स्तोत्र का पाठ करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं।
शिव रक्षा स्तोत्र
विनियोग-ॐ अस्य श्री शिवरक्षास्तोत्रमंत्रस्य याज्ञवल्क्यऋषि:,
श्री सदाशिवो देवता, अनुष्टुपछन्द: श्री सदाशिवप्रीत्यर्थं शिव रक्षा स्तोत्रजपे विनियोग:।
चरितम् देवदेवस्य महादेवस्य पावनम् ।
अपारम् परमोदारम् चतुर्वर्गस्य साधनम् ।1।
गौरी विनायाकोपेतम् पंचवक्त्रं त्रिनेत्रकम् ।
शिवम् ध्यात्वा दशभुजम् शिवरक्षां पठेन्नर:।2।
गंगाधर: शिर: पातु भालमर्धेन्दु शेखर:।
नयने मदनध्वंसी कर्णौ सर्पविभूषण: ।3।
घ्राणं पातु पुरारातिमुर्खं पातु जगत्पति:।
जिह्वां वागीश्वर: पातु कन्धरां शितिकन्धर: ।4।
श्रीकण्ठ: पातु मे कण्ठं स्कन्धौ विश्वधुरन्धर:।
भुजौ भूभार संहर्ता करौ पातु पिनाकधृक्।5।
हृदयं शङ्कर: पातु जठरं गिरिजापति:।
नाभिं मृत्युञ्जय: पातु कटी व्याघ्रजिनाम्बर: ।6।
सक्थिनी पातु दीनार्तशरणागत वत्सल:।
उरु महेश्वर: पातु जानुनी जगदीश्वर: ।7।
जङ्घे पातु जगत्कर्ता गुल्फौ पातु गणाधिप:।
चरणौ करुणासिन्धु: सर्वाङ्गानि सदाशिव: ।8।
एताम् शिवबलोपेताम् रक्षां य: सुकृती पठेत्।
स भुक्त्वा सकलान् कामान् शिवसायुज्यमाप्नुयात्।9।
गृहभूत पिशाचाश्चाद्यास्त्रैलोक्ये विचरन्ति ये।
दूराद् आशु पलायन्ते शिवनामाभिरक्षणात्।10।
अभयम् कर नामेदं कवचं पार्वतीपते:।
भक्त्या बिभर्ति य: कण्ठे तस्य वश्यं जगत्त्रयम्।11।
इमां नारायण: स्वप्ने शिवरक्षां यथाऽदिशत्।
प्रातरुत्थाय योगीन्द्रो याज्ञवल्क्यस्तथाऽलिखत्।12।
।इति श्री शिवरक्षास्तोत्रं सम्पूर्णम।