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शिवलिंग की उत्पत्ति: एक पौराणिक कथा

इस लेख में हम शिवलिंग की उत्पत्ति की पौराणिक कथा का वर्णन कर रहे हैं। जानें कैसे भगवान शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच विवाद को सुलझाया और शिवलिंग का महत्व क्या है। यह कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें जीवन में बाधाओं से मुक्ति पाने का मार्ग भी दिखाती है।
 

भगवान शिव की पूजा का महत्व

हिंदू धर्म में भगवान शिव की पूजा का एक विशेष स्थान है। शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में आने वाली सभी बाधाओं से मुक्ति मिलती है और घर में सुख-शांति बनी रहती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई? इस लेख में हम शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा को साझा करेंगे।


शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा

शिवपुराण के पहले खंड के नौवें अध्याय में शिवलिंग की उत्पत्ति का वर्णन मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्माजी के बीच यह विवाद हुआ कि कौन अधिक शक्तिशाली है। जब यह बात सभी देवताओं, ऋषियों और मुनियों के बीच फैल गई, तो उन्होंने भगवान विष्णु और ब्रह्माजी को भगवान शिव के पास जाने के लिए कहा।


महादेव को पहले से ही इस विवाद की जानकारी थी। उन्होंने देवताओं से कहा कि जो भी मेरे द्वारा उत्पन्न ज्योति के अंतिम छोर तक सबसे पहले पहुंचेगा, वही अधिक शक्तिशाली माना जाएगा। इस पर भगवान विष्णु और ब्रह्माजी सहमत हो गए। भगवान शिव के तेज से एक ज्योति प्रकट हुई, जो पाताल और आकाश की ओर बढ़ने लगी। इस दौरान भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ज्योति तक नहीं पहुंच पाए। भगवान विष्णु ने ज्योति तक न पहुंचने पर भगवान शिव से क्षमा मांगी।


भगवान शिव ने ब्रह्माजी से पूछा कि क्या वह ज्योति के अंतिम छोर तक पहुंच पाए। ब्रह्माजी ने श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए झूठ बोला और कहा कि ज्योति की अंतिम बिंदु पाताल में है। भगवान शिव ने कहा कि ब्रह्माजी, आप झूठ बोल रहे हैं। इसके बाद भगवान शिव ने भगवान विष्णु को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। तब से इस ज्योति को शिवलिंग के रूप में पूजा जाने लगा।