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शीतला सातम व्रत की कथा: पौराणिक प्रेरणा और महत्व

शीतला सातम का पर्व भाद्रपद मास की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है, जिसमें बासी भोजन का महत्व है। इस दिन महिलाएं अपने परिवार की भलाई के लिए व्रत रखती हैं। इस लेख में हम शीतला सातम की पौराणिक कथा का वर्णन करेंगे, जिसमें एक सास और उसकी बहुओं की कहानी है, जो ताजा खाना बनाने के कारण कठिनाइयों का सामना करती हैं। माता शीतला की कृपा से उन्हें पुनः सुख मिलता है। जानें इस व्रत का महत्व और इसकी प्रेरणादायक कहानी।
 

शीतला सातम व्रत का महत्व

शीतला सातम व्रत की कथा (नई दिल्ली): शीतला सातम का पवित्र पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। यह त्योहार आमतौर पर रक्षाबंधन के बाद और श्रावण पूर्णिमा के बाद आने वाली सप्तमी को पड़ता है। इस दिन लोग एक दिन पहले बना हुआ बासी खाना (बैसाणु) खाते हैं, क्योंकि इस व्रत में आग का उपयोग करना वर्जित माना जाता है। कई स्थानों पर नीम के पत्तों से शीतला माता की पूजा की जाती है। महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और अपने परिवार की सुख-शांति और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करती हैं। शीतला सातम का व्रत बिना कथा सुने अधूरा माना जाता है। आइए जानते हैं शीतला सातम की पौराणिक और प्रेरणादायक कथा।


शीतला सातम की व्रत कथा

यह कहानी बहुत पुराने समय की है। एक गाँव में एक बूढ़ी सास और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा था। लेकिन दोनों बहुओं ने सुबह उठकर ताजा खाना बना लिया, जो इस व्रत की परंपरा के खिलाफ था। इस व्रत में बासी भोजन खाने और माता को चढ़ाने की प्रथा है। जब सास को इस बात का पता चला, तो वह बहुत नाराज हुईं।


कुछ समय बाद दोनों बहुओं के बच्चों की अचानक मृत्यु हो गई। यह देख सास का गुस्सा और बढ़ गया और उन्होंने दोनों बहुओं को घर से निकाल दिया। सास ने कहा, “जब तक तुम्हारे बच्चे जीवित नहीं हो जाते, तब तक तुम घर नहीं लौट सकतीं।” दोनों बहुएं अपने बच्चों के शव लेकर घर से निकल पड़ीं।


रास्ते में विश्राम के लिए रुकने पर दोनों बहुओं की मुलाकात शीतला और ओरी नाम की दो बहनों से हुई। ये दोनों अपने सिर में जूँ की समस्या से परेशान थीं। बहुओं को उनकी हालत पर दया आई और उन्होंने शीतला और ओरी के सिर को साफ किया, जिससे उन्हें बहुत राहत मिली। इस मदद के बदले शीतला और ओरी ने बहुओं को आशीर्वाद दिया कि “तुम्हारी गोद हरी हो जाए।”


यह सुनकर बहुएं अपने बच्चों के शव को देखकर रोने लगीं। तब शीतला माता ने उन्हें बताया कि ताजा खाना बनाने की उनकी गलती की वजह से यह दुख भोगना पड़ा। दोनों बहुओं ने अपनी गलती स्वीकारी और माता से माफी मांगी। उन्होंने वचन दिया कि वे भविष्य में कभी ऐसी गलती नहीं करेंगी। माता शीतला प्रसन्न हुईं और उन्होंने दोनों बच्चों को जीवित कर दिया। इसके बाद पूरे गाँव में शीतला सातम का व्रत और उत्सव धूमधाम से मनाया जाने लगा।