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शुक्र प्रदोष व्रत: विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व

शुक्र प्रदोष व्रत, जो सितंबर में मनाया जाता है, विवाहित महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है, जिससे कष्टों से मुक्ति और इच्छाओं की पूर्ति होती है। ज्योतिष के अनुसार, शुक्र ग्रह से जुड़ा यह व्रत दांपत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य बनाए रखने में मदद करता है। जानें इस व्रत की पूजा विधि और इसके लाभ के बारे में।
 

भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा का महत्व


सितंबर का शुक्र प्रदोष व्रत आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाएगा। यह व्रत भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। इस वर्ष, यह व्रत शुक्रवार, 19 सितंबर 2025 को आयोजित होगा। जब प्रदोष व्रत शुक्रवार को आता है, तो इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस दिन सिद्ध योग बनेगा और रात में भद्रा का प्रभाव रहेगा।


पूजा विधि और महत्व

शुक्र प्रदोष व्रत के दिन उपवास रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यह व्रत कष्टों से मुक्ति और सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए यह व्रत बहुत शुभ माना जाता है।


अखंड सौभाग्य की प्राप्ति


ज्योतिष के अनुसार, शुक्रवार का दिन शुक्र ग्रह से संबंधित है, जो प्रेम और रोमांस का प्रतीक है। यदि कुंडली में शुक्र की स्थिति मजबूत हो, तो दांपत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य बना रहता है। इसलिए, शुक्रवार को प्रदोष व्रत करने वाली महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।


शिवपुराण और स्कंद पुराण में महत्व

शुक्र प्रदोष व्रत को पति की आयु, वैवाहिक सुख, धन-समृद्धि और पारिवारिक सौहार्द के लिए बहुत शुभ माना गया है। विवाहित महिलाओं को इस दिन शिव-पार्वती की पूजा अवश्य करनी चाहिए। शिवपुराण और स्कंद पुराण में भी इस व्रत को फलदायी बताया गया है।


पूजा का सही समय


पूजा प्रदोष काल में की जानी चाहिए, जो सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद तक होता है। 19 सितंबर को पूजा के लिए शाम 6:21 से 8:43 का समय शुभ रहेगा।