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श्राद्ध के लिए प्रमुख स्थान: पितरों को शांति देने वाले स्थल

श्राद्ध केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। इस लेख में हम उन प्रमुख स्थानों के बारे में चर्चा करेंगे, जहां श्राद्ध करने से पितरों को संतोष, सुख और मुक्ति मिलती है। गया, वाराणसी, इलाहाबाद, हरिद्वार, बद्रीनाथ, द्वारका और पुरी जैसे स्थलों पर श्राद्ध का विशेष महत्व है। जानें इन स्थानों की धार्मिक मान्यता और श्राद्ध के दौरान यहां की जाने वाली विशेष क्रियाओं के बारे में।
 

श्राद्ध का महत्व

श्राद्ध केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का एक तरीका है। यह एक पवित्र समय है जब हम पितरों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें याद करते हैं। इस दौरान पिंडदान, तर्पण और दान जैसी क्रियाएं की जाती हैं। हिंदू धर्म के अनुसार, अश्विन माह के कृष्ण पक्ष में किया गया श्राद्ध पूजन सीधे हमारे पूर्वजों तक पहुंचता है और उन्हें शांति प्रदान करता है। इस लेख में हम उन स्थानों के बारे में चर्चा करेंगे, जहां श्राद्ध करने से पितरों को संतोष, सुख और मुक्ति मिलती है।


गया, बिहार

गया के बारे में मान्यता है कि यहां श्राद्ध करने से सात पीढ़ियों तक के पितरों को मुक्ति मिलती है। बिहार के गया में फाल्गु नदी के किनारे विष्णुपद मंदिर पर पिंडदान और तर्पण किया जाता है। कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु के चरणचिन्ह मौजूद हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, सीताजी ने यहां अपने पितरों का पिंडदान किया था, इसलिए इसे मुक्तिधाम भी कहा जाता है। हर साल पितृपक्ष के दौरान लाखों लोग यहां आते हैं।


वाराणसी

वाराणसी, जिसे काशी भी कहा जाता है, भगवान शिव की नगरी है। यहां किए गए कर्म सीधे मुक्ति का द्वार खोलते हैं। मणिकर्णिका घाट और पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है। काशी में त्रिपिंडी श्राद्ध करने से आत्मा को शिवलोक तक पहुंचने का मार्ग मिलता है।


इलाहाबाद

इलाहाबाद का नाम सुनते ही गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम याद आता है। यहां कुंभ और अर्धकुंभ का आयोजन होता है। संगम घाट को पितृ पक्ष के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना जाता है, जहां लोग शुभ तिथियों पर स्नान और पिंडदान करते हैं।


हरिद्वार

गंगा तट पर स्थित हरिद्वार को मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है। यहां नारायण शिला और कुशावर्त घाट पर पितरों के श्राद्ध की पूजा की जाती है। हर की पौड़ी पर तर्पण करना विशेष फलदायी माना जाता है। मान्यता है कि यदि किसी आत्मा को प्रेतयोनि का कष्ट है, तो नारायण शिला पर किए गए श्राद्ध से उसे मुक्ति मिलती है। इस कारण हरिद्वार में श्राद्ध पक्ष के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।


बद्रीनाथ

उत्तराखंड का बद्रीनाथ चार धामों में से एक है और श्राद्ध के लिए एक पवित्र स्थान माना जाता है। बद्रीनाथ मंदिर के पास ब्रह्मकपाल घाट स्थित है, जहां भगवान शिव को ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिलती है। श्रद्धालु यहां अपने पितरों का अंतिम श्राद्ध करना शुभ मानते हैं। यहां किया गया श्राद्ध गया से कई गुना फलदाई माना जाता है।


द्वारका

गुजरात की द्वारका नगरी को भगवान श्रीकृष्ण का निवास स्थान माना जाता है। द्वारकाधीश मंदिर में दर्शन के साथ ही यहां पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। समुद्र किनारे बसी द्वारका आध्यात्मिक और धार्मिक दृष्टि से बेहद शक्तिशाली मानी जाती है।


पुरी

ओडिशा का पुरी चार धामों में से एक है, जहां भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर है। पितृपक्ष में यहां श्राद्ध और पिंडदान करने की परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि यहां किया गया श्राद्ध आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाता है, इसलिए हर साल आश्विन माह के दौरान हजारों श्रद्धालु पुरी आते हैं।