सप्तमी पूजा: देवी कालरात्रि की महिमा और विशेष विधियाँ
सप्तमी पूजा का महत्व
सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह सुबह होती है, लेकिन रात में विशेष विधि से देवी की पूजा की जाती है। इस दिन विभिन्न प्रकार के मिष्टान्न और कुछ स्थानों पर तांत्रिक विधियों से पूजा के दौरान मदिरा भी अर्पित की जाती है। सप्तमी की रात को सिद्धियों की रात भी कहा जाता है। भक्त इस दिन सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं, जिससे कुण्डलिनी जागरण होता है।
माता कालरात्रि का स्वरूप
(29 सितंबर - शारदीय नवरात्र सप्तमी)
पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस संसार में धर्म की रक्षा और दैत्यों का विनाश करने के लिए माता आदिशक्ति दुर्गा का अवतार होता है। नवरात्रि के सातवें दिन देवी कालरात्रि का प्रकट होना होता है। कालरात्रि का अर्थ है वह रात जो काल को समाप्त करती है। उनके सामने काल भी ठहर नहीं सकता।
कालरात्रि की विशेषताएँ
कालरात्रि का स्वरूप अंधकार के समान है, और उनका शरीर काला होता है। उनके बाल खुले रहते हैं और गले में चमकती हुई माला होती है। देवी के तीन नेत्र हैं, जो ब्रह्मांड के समान गोल हैं और जिनसे चमकीली किरणें निकलती हैं। उनका वाहन गर्दभ है।
भक्तों के लिए उपासना
माता कालरात्रि अपने भक्तों को सभी प्रकार के भय और बाधाओं से मुक्त करती हैं। उनका एक हाथ वरमुद्रा में है, जबकि दूसरे हाथ में खडग है। भक्तों को माता कालरात्रि की उपासना करते समय ध्यान रखना चाहिए कि वे पवित्रता और संयम का पालन करें।
सप्तमी पूजा की विधि
सप्तमी के दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। देवी कालरात्रि की पूजा से भक्तों को सभी दु:ख और संताप से मुक्ति मिलती है। इस दिन विशेष मंत्रों का जाप करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।
निष्कर्ष
सप्तमी की पूजा के दिन भक्तजन देवी के दर्शन के लिए पूजा स्थलों पर एकत्र होते हैं। इस दिन देवी की विशेष पूजा विधि से भक्तों को सिद्धियों की प्राप्ति होती है। माता कालरात्रि की कृपा से भक्तों को सभी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है।