सिद्धेश्वरी मंदिर: महादेव के अद्भुत स्वरूपों का स्थल
सिद्धेश्वरी मंदिर, पश्चिम बंगाल
साल 2025 में 11 जुलाई से सावन का पवित्र महीना आरंभ होगा, जो 09 अगस्त को रक्षा बंधन के दिन समाप्त होगा। इस दौरान देशभर के शिव मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है। सावन के समय सिद्धेश्वरी मंदिर में भी भक्तों की अच्छी खासी संख्या होती है। यह मंदिर पश्चिम बंगाल के आसनसोल के बराकर में दामोदर नदी के किनारे स्थित है और इसकी उम्र लगभग सात सौ वर्ष है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, सिद्धेश्वरी मंदिर में भगवान शिव के विभिन्न रूपों की पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और उनके जीवन में खुशियों का वास होता है। आइए जानते हैं इस मंदिर की विशेषताओं के बारे में।
पांचवां मंदिर अदृश्य
कोलकाता के पुरातत्व विभाग के अनुसार, सिद्धेश्वरी मंदिर का निर्माण सातवीं से नौवीं शताब्दी के पाल युग में हुआ था, जिसमें पांच मंदिरों का उल्लेख है। चार मंदिर पूर्ण हैं, लेकिन पांचवां मंदिर अधूरा है।
मंदिर के पुजारियों का कहना है कि सिद्धेश्वरी मंदिर परिसर में चार मंदिर किसी व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि स्वाभाविक रूप से बने हैं। जबकि पांचवां मंदिर अधूरा रह गया है, लेकिन लोग यहां पूजा करते हैं, जिसे अदृश्य मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर के बारे में लोगों की अलग-अलग धारणाएं हैं। श्रद्धालु भगवान शिव की पूजा करते हैं, जबकि चारों मंदिरों में कुल 12 शिवलिंग स्थापित हैं, जिन्हें भक्त 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में मानते हैं।
तीन शिवलिंगों का अद्भुत संगम
सिद्धेश्वरी मंदिर के मुख्य द्वार पर दो मंदिर हैं, जिनमें तीन-तीन शिवलिंग स्थापित हैं, जिन्हें भक्त त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) या त्रिपुरारी के रूप में पूजते हैं। प्रत्येक शिवलिंग एक देवता का प्रतिनिधित्व करता है।
इन दो मंदिरों में से एक में भगवान शिव का एक शिवलिंग है, जबकि दूसरे में पांच शिवलिंग और मां गौरी की मूर्ति है। जिस मंदिर में पांच शिवलिंग हैं, उसे पुरातत्व विभाग ने मां गौरी का मंदिर और भक्त पंचानन मंदिर के नाम से जाना जाता है।
भगवान शिव का प्रतीक
मंदिर के मुख्य द्वार के सामने भगवान शिव का एक मंदिर है, जिसमें एक शिवलिंग स्थापित है। इसे भगवान शिव का प्रतीक माना जाता है। शिवलिंग को भगवान शिव के निराकार रूप का प्रतीक माना जाता है, जो ब्रह्मांड की शुरुआत और अंत से परे है।