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सोम प्रदोष व्रत: भगवान शिव की कृपा पाने का विशेष अवसर

सोम प्रदोष व्रत, जो 17 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा, भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त जानकर भक्त इस व्रत का अधिकतम लाभ उठा सकते हैं। प्रदोष काल में की गई पूजा का विशेष महत्व है, जिससे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जानें इस व्रत के महत्व और विधि के बारे में विस्तार से।
 

प्रदोष व्रत का महत्व


नई दिल्ली: मार्गशीर्ष का महीना हिंदू पंचांग में अत्यधिक शुभ माना जाता है और यह देवताओं का प्रिय समय है। इस महीने में भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है। त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाने वाला प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। मान्यता है कि प्रदोष काल में शिव की पूजा करने से भक्त की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और जीवन की सभी बाधाएं समाप्त होती हैं।


नवंबर 2025 का पहला प्रदोष व्रत सोमवार, 17 नवंबर को मनाया जाएगा। यह व्रत कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर है और सोमवार के दिन होने के कारण इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन का महत्व सोमवार और प्रदोष व्रत के संयोजन से कई गुना बढ़ जाता है।


सोम प्रदोष व्रत का महत्व

कहा जाता है कि सोम प्रदोष व्रत रखने से भक्त को दोगुना फल मिलता है। जो व्यक्ति इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिपूर्वक पूजा करता है, उसे दोनों व्रतों का पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन बेलपत्र, अक्षत, चंदन, धूप-दीप और गंगाजल से शिवाभिषेक करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।


शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, आज प्रदोष व्रत के अवसर पर शिवपूजन का सर्वोत्तम समय प्रदोष काल में रहेगा। यह पावन अवधि सूर्यास्त के तुरंत बाद शुरू होती है और लगभग डेढ़ घंटे तक चलती है। आज प्रदोष काल का शुभ समय शाम 4:55 बजे से रात 7:32 बजे तक रहेगा।


प्रदोष काल में पूजा का महत्व

प्रदोष व्रत में पूजा का सबसे पवित्र समय प्रदोष काल माना जाता है, जो सूर्यास्त के बाद लगभग डेढ़ घंटे का होता है। इस समय भगवान शिव अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाते हैं। इसलिए इस समय में किया गया जलाभिषेक, पूजन और प्रदोष स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।


पूजा विधि

प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें।


स्वच्छ और हल्के रंग के वस्त्र पहनें।


व्रत का संकल्प लें।


प्रदोष काल में पूजा आरंभ करें।


पूजा स्थल पर शिवलिंग स्थापित करें या मंदिर जाएं।


भगवान शिव और माता पार्वती पर जल एवं गंगाजल छिड़कें।


दीपक जलाएं, धूप अर्पित करें।


रौली, चावल, चंदन, अक्षत, फूल अर्पित करें।


शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी से अभिषेक करें।


बेलपत्र, धतूरा और फल अर्पित करें।


“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।


शिव प्रदोष स्तोत्र, शिव चालीसा और महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करें।


शिवजी और माता पार्वती की आरती करें।


व्रत का पारण रात्रि में या अगले दिन प्रातः किया जाता है.