सोलह सोमवार व्रत की कथा: एक चमत्कारी अनुभव
सोलह सोमवार व्रत की विधि
सोलह सोमवार व्रत का पालन करना बहुत सरल है। इस व्रत को करने के लिए सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें। आधा सेर गेहूं के आटे से तीन अंग बनाएँ। भगवान शिव की पूजा करें, घी का दीपक जलाएँ, और बेलपत्र, चंदन, फूल और जनेऊ अर्पित करें। एक अंग शिव जी को चढ़ाएँ, एक स्वयं खाएँ और शेष को बांट दें। सत्रहवें सोमवार को चूरमा बनाकर भोग लगाएँ और बाँट दें। इस व्रत के माध्यम से न केवल इच्छाएँ पूरी होती हैं, बल्कि जीवन की कठिनाइयाँ भी सरल हो जाती हैं।
सोलह सोमवार व्रत कथा: एक प्रेरणादायक कहानी
सोलह सोमवार व्रत की कथा सुनने और पढ़ने का अपना महत्व है। यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और यह न केवल मन को शांति देता है, बल्कि जीवन की कठिनाइयों को भी आसान बनाता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से इस व्रत का पालन करता है, भगवान शिव उसकी सभी इच्छाएँ पूरी करते हैं। विशेषकर अविवाहित लड़कियों के लिए यह व्रत वरदान के समान है, क्योंकि इससे मनचाहा पति मिलता है। यह व्रत हर उस व्यक्ति के लिए है जो अपने जीवन में सुख, समृद्धि और शांति की कामना करता है।
कथा का आरंभ: अमरावती नगर
कथा की शुरुआत अमरावती नगर से होती है, जहाँ भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण पर आए थे। वहाँ का राजा भगवान शिव का भक्त था और उसने एक भव्य शिव मंदिर बनवाया था। शिव और पार्वती उस मंदिर में ठहरे। एक दिन माता पार्वती ने शिव जी से चौसर खेलने की इच्छा जताई। खेल शुरू हुआ, तभी मंदिर का पुजारी वहाँ आ गया। पार्वती ने मजाक में पुजारी से पूछा, 'इस खेल में कौन जीतेगा?' पुजारी ने कहा, 'महादेव जी जीतेंगे।' लेकिन किस्मत ने कुछ और ही तय किया और जीत पार्वती की हुई।
पुजारी का श्राप और पुनः उद्धार
पार्वती को पुजारी की गलत भविष्यवाणी पर गुस्सा आ गया और उन्होंने उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया। देखते ही देखते पुजारी की हालत खराब हो गई। राजा ने जब यह सुना, तो उसने पुजारी को मंदिर से निकाल दिया। कई दिनों बाद, कुछ अप्सराएँ मंदिर आईं और पुजारी की दयनीय स्थिति देखी। उन्होंने उसे सोलह सोमवार व्रत करने की सलाह दी।
व्रत का प्रभाव
पुजारी ने अप्सराओं की सलाह मानी और सोलह सोमवार तक व्रत किया। भगवान शिव की कृपा से उसका कोढ़ ठीक हो गया और राजा ने उसे फिर से मंदिर का पुजारी बना दिया। कुछ समय बाद, जब शिव और पार्वती दोबारा मंदिर आए, तो पार्वती ने पुजारी से उसकी तबीयत का राज पूछा। पुजारी ने सोलह सोमवार व्रत की महिमा बताई।
कार्तिकेय और ब्रह्मदत्त की कहानी
यह सुनकर माता पार्वती ने भी यह व्रत शुरू किया। उन्होंने अपने बेटे कार्तिकेय के गुस्से और दूर जाने से दुखी होकर यह व्रत किया। व्रत के प्रभाव से तीसरे दिन कार्तिकेय लौट आए। कार्तिकेय ने अपने दोस्त ब्रह्मदत्त को वापस लाने के लिए भी यह व्रत किया। व्रत पूरा होते ही ब्रह्मदत्त लौट आए।
गोपाल और मंगला की कहानी
गोपाल ने भी व्रत की महिमा सुनी और राज्य पाने की इच्छा से व्रत किया। व्रत पूरा होने पर वह एक नगर में गया, जहाँ के राजा ने उससे अपनी बेटी मंगला की शादी कर दी। लेकिन गोपाल की पत्नी मंगला ने सोलह सोमवार व्रत का अपमान किया, जिसके परिणामस्वरूप भगवान शिव के प्रकोप से गोपाल ने उसे महल से निकाल दिया। अंत में, मंगला ने भी सोलह सोमवार व्रत किया और उसकी जिंदगी फिर से खुशियों से भर गई।