स्कंद षष्ठी: भगवान कार्तिकेय की पूजा का महत्व और विधि
स्कंद षष्ठी का महत्व
नई दिल्ली: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि शुक्रवार को मनाई जाएगी। यह दिन भगवान कार्तिकेय, जिन्हें स्कंद भी कहा जाता है, को समर्पित है। इस दिन विशेष पूजा और व्रत करने से मनोकामनाओं की पूर्ति की मान्यता है। दृक पंचांग के अनुसार, 12 सितंबर को पंचमी तिथि सुबह 9:58 बजे तक रहेगी, इसके बाद षष्ठी तिथि का आरंभ होगा। इस दिन अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:52 बजे से 12:42 बजे तक रहेगा, जबकि राहुकाल सुबह 10:44 बजे से 12:17 बजे तक रहेगा।
पंचांग और ज्योतिषीय जानकारी
इस दिन सूर्य देव सिंह राशि में और चंद्रमा मेष राशि में शाम 5:30 बजे तक रहेंगे, उसके बाद वे वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे। स्कंद पुराण के अनुसार, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान कार्तिकेय ने इसी दिन तारकासुर नामक दैत्य का वध किया था, जिसके उपलक्ष्य में इस तिथि को स्कंद षष्ठी के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। देवताओं ने इस विजय की खुशी में स्कंद षष्ठी का उत्सव मनाया था।
व्रत और पूजा विधि
स्कंद पुराण के अनुसार, जो दंपत्ति संतान सुख से वंचित हैं, उन्हें स्कंद षष्ठी का व्रत अवश्य करना चाहिए। इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से संतान की प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है। व्रत की शुरुआत ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करने से करें। इसके बाद मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और आसन बिछाएं। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करें। सबसे पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें।
पूजा सामग्री और आरती
इसके बाद भगवान कार्तिकेय को वस्त्र, इत्र, चंपा के फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें। चंपा भगवान कार्तिकेय का प्रिय पुष्प है, इसलिए इस दिन को स्कंद षष्ठी, कांडा षष्ठी और चंपा षष्ठी भी कहा जाता है। भगवान कार्तिकेय की आरती करने और तीन बार परिक्रमा करने के बाद “ऊं स्कंद शिवाय नमः” मंत्र का जाप करने से विशेष लाभ मिलता है। अंत में आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम करें और प्रसाद ग्रहण करें।