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धरती की गति में अचानक तेजी: क्या बदल जाएगा समय का माप?

वैज्ञानिकों ने हाल ही में पृथ्वी की घूमने की गति में अचानक तेजी का खुलासा किया है, जो भविष्य में समय मापने के तरीकों को प्रभावित कर सकता है। अब तक माना जाता था कि पृथ्वी की गति धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन अब यह तेजी से घूमने लगी है। यदि यह बदलाव जारी रहा, तो 2029 में पहली बार 'एक सेकंड' घटाना पड़ सकता है। जानें इसके पीछे के कारण और इससे इंसानों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में।
 

धरती की गति में बदलाव का नया खुलासा

हाल ही में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के घूमने की गति के बारे में एक चौंकाने वाला तथ्य उजागर किया है। पहले माना जाता था कि पृथ्वी की गति धीरे-धीरे कम हो रही है, लेकिन अब यह तेजी से घूमने लगी है। इस परिवर्तन के कारण भविष्य में दिन की लंबाई में मिलीसेकंड की कमी आ सकती है, जो घड़ियों और समय की गणना के तरीकों को प्रभावित कर सकता है.


क्या होगा अगर गति में यह बदलाव जारी रहा?

यदि यह गति इसी तरह जारी रही, तो 2029 में इंसान को पहली बार 'एक सेकंड' घटाना पड़ सकता है। अब तक 'लीप सेकंड' जोड़ा जाता था, लेकिन भविष्य में 'लीप सेकंड माइनस' की आवश्यकता हो सकती है.


धरती की गति में तेजी के कारण

पृथ्वी की सामान्य गति में मिलीसेकंड की वृद्धि देखी जा रही है। पहले जहां हर साल रोटेशन में कमी आती थी, अब कुछ विशेष तारीखों पर यह बढ़ रही है। जैसे कि 9 जुलाई, 22 जुलाई और 5 अगस्त को धरती की गति सामान्य से अधिक होगी. विशेषज्ञों का कहना है कि 5 अगस्त 2025 का दिन 1.51 मिलीसेकंड छोटा हो सकता है.


लीप सेकंड का उल्टा प्रभाव

समय की सटीकता बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक 'लीप सेकंड' जोड़ते रहे हैं। लेकिन अगर धरती की गति में तेजी आती रही, तो 2029 में पहली बार एक सेकंड 'कम' करना पड़ सकता है, जिससे घड़ी की सूई पीछे खिसक सकती है.


धरती की गति में तेजी के संभावित कारण

वैज्ञानिकों के अनुसार, पृथ्वी की गति में वृद्धि के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं, जैसे कि: पृथ्वी के कोर में बदलाव, महासागरों की धाराओं में उतार-चढ़ाव, भूकंप या ग्लेशियरों का पिघलना, और पृथ्वी के पिघले बाहरी कोर में हलचल. हालांकि, इनमें से कोई भी कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं है.


डायनासोर युग से अब तक समय का परिवर्तन

रिसर्चर्स का कहना है कि डायनासोर युग में पृथ्वी का एक दिन केवल 23 घंटे का होता था। धीरे-धीरे दिन बढ़ते गए और अब हम 24 घंटे के दिन में जी रहे हैं। लेकिन अब पहली बार दिन छोटा होने की संभावना है, जो समय मापने के ढांचे को चुनौती दे सकता है.


इस बदलाव का इंसानों पर प्रभाव

हालांकि आम लोगों को मिलीसेकंड की कमी का एहसास नहीं होगा, लेकिन सैटेलाइट नेविगेशन, अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग टाइमस्टैम्प्स, और स्पेस साइंस जैसी गतिविधियों में इसका बड़ा प्रभाव पड़ेगा. यही कारण है कि वैज्ञानिक इस बदलाव को गंभीरता से ले रहे हैं.


समय अब स्थिर नहीं रहा!

समय को लेकर एक सामान्य धारणा यह रही है कि यह स्थिर है। लेकिन यह पूरी तरह से पृथ्वी की गति पर निर्भर करता है। जैसे-जैसे पृथ्वी की गति में बदलाव होता है, समय की गणना भी प्रभावित होती है.


क्या यह बदलाव स्थायी है?

वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं तय कर पाए हैं कि पृथ्वी की यह गति स्थायी रूप से बढ़ रही है या यह अस्थायी बदलाव है। लेकिन यदि यह ट्रेंड बना रहा, तो समय मापने के तरीके में इतिहास का सबसे बड़ा परिवर्तन संभव है.