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बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने विकसित किया सौर ऊर्जा से हाइड्रोजन उत्पादन उपकरण

बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है जो सौर ऊर्जा का उपयोग करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करती है। यह उपकरण घरों और उद्योगों को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने में सहायक हो सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम होगी। डॉ. अशुतोष के. सिंह के नेतृत्व में विकसित इस उपकरण में उच्च दक्षता और लंबी स्थिरता की विशेषताएं हैं। यह खोज भारत के ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लक्ष्यों के अनुरूप है और स्वच्छ ऊर्जा क्रांति को गति देने की क्षमता रखती है।
 

क्रांतिकारी खोज का विवरण

बेंगलुरु के सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (CeNS) के शोधकर्ताओं ने एक नई तकनीक का विकास किया है, जो सौर ऊर्जा का उपयोग करके ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन करती है। यह उपकरण घरों, वाहनों और उद्योगों को स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने में सहायक हो सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम होगी।


तकनीक का कार्यप्रणाली

कैसे काम करती है ये तकनीक

डॉ. अशुतोष के. सिंह के नेतृत्व में एक शोध टीम ने एक उन्नत सिलिकॉन-आधारित फोटोएनोड तैयार किया है, जिसमें n-i-p हेटरोजंक्शन आर्किटेक्चर का उपयोग किया गया है। यह उपकरण केवल सौर ऊर्जा और आसानी से उपलब्ध सामग्रियों का उपयोग करके पानी के अणुओं को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित करता है। मैग्नेट्रॉन स्पटरिंग तकनीक का उपयोग करके सामग्रियों को जमा किया गया है, जो स्केलेबल और औद्योगिक उपयोग के लिए उपयुक्त है। इस दृष्टिकोण ने बेहतर प्रकाश अवशोषण, तेज चार्ज ट्रांसपोर्ट और कम रीकॉम्बिनेशन हानि सुनिश्चित की है।


उपकरण की विशेषताएं

उच्च दक्षता: 600 एमवी का उत्कृष्ट सतह फोटोवोल्टेज और लगभग 0.11 वीआरएचई का कम प्रारंभिक पोटेंशियल।
लंबी स्थिरता: क्षारीय परिस्थितियों में 10 घंटे से अधिक समय तक केवल 4% प्रदर्शन हानि के साथ कार्य।
स्केलेबिलिटी: 25 वर्ग सेंटीमीटर के फोटोएनोड ने बड़े पैमाने पर उत्कृष्ट सौर जल-विभाजन परिणाम दिए।


क्लीन एनर्जी में मील का पत्थर

क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में मील का पत्थर

यह खोज भारत के राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन के लक्ष्यों के अनुरूप है, जो कार्बन तटस्थता और ऊर्जा स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है। यह तकनीक हाइड्रोजन-आधारित ऊर्जा प्रणालियों को प्रोत्साहित कर सकती है, जो घरों से लेकर भारी उद्योगों तक को टिकाऊ ऊर्जा प्रदान करेगी।


शोध का प्रकाशन

जर्नल में प्रकाशित हुआ शोध

यह शोध रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री के जर्नल ऑफ मटेरियल्स केमिस्ट्री A में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह केवल शुरुआत है, और भविष्य में यह तकनीक स्वच्छ ऊर्जा क्रांति को गति देगी।