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गुरु पूर्णिमा: महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जिसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन माता-पिता और बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना महत्वपूर्ण होता है। गुरु ज्ञान के स्रोत होते हैं और इस दिन उनके प्रति आभार व्यक्त करना आवश्यक है। जानें इस पर्व का महत्व, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त के बारे में।
 

गुरु पूर्णिमा का महत्व

गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा और व्यास जयंती भी कहा जाता है। इस दिन माता-पिता और बुजुर्गों का आशीर्वाद लेना महत्वपूर्ण होता है। गुरु ज्ञान के स्रोत होते हैं और वे हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु केवल शिक्षक नहीं होते, बल्कि जीवन के मार्गदर्शक भी होते हैं। इस दिन गुरु के प्रति आभार व्यक्त करना आवश्यक है। आप इस दिन बृहस्पति बीज मंत्र 'ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः' का 108 बार जाप कर सकते हैं और गुरु को यथाशक्ति दान-दक्षिणा देने का प्रयास करें।


इंद्र और वैधृति योग

हिंदू पंचांग के अनुसार, 10 जुलाई को भद्रा का समय सुबह 05:31 से दोपहर 01:55 तक रहेगा। इस दिन सुबह 05:31 से 07:15 तक चौघड़िया का शुभ मुहूर्त है, जो स्नान, दान और पूजा के लिए उपयुक्त है। इस दिन इंद्र योग और वैधृति योग का भी शुभ संयोग बन रहा है।


पूजन मूहूर्त

गुरु पूर्णिमा पर स्नान-दान का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 04:10 से 04:50 तक रहेगा। इसके अलावा, सुबह 11:59 से 12:54 तक अभिजीत मुहूर्त और दोपहर 02:45 से 03:40 तक विजय मुहूर्त दान-पुण्य के लिए उत्तम समय है।


पूजा विधि

इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। यदि यह संभव न हो, तो बाल्टी में गंगाजल डालकर स्नान करें। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु और मां लक्ष्मी का पूजन करें। भगवान विष्णु को पीले फूल और हल्दी अर्पित करें, जबकि मां लक्ष्मी को लाल चंदन और लाल फूल अर्पित करें। इसके बाद मंदिर में घी का दीपक जलाकर गुरु पूर्णिमा की व्रत कथा पढ़ें। यदि संभव हो, तो व्रत लेने का संकल्प करें और शाम को सत्यनारायण की कथा करें। अंत में, लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें और लक्ष्मीनारायण की आरती करें। रात में चंद्रोदय के समय अर्घ्य दें।