भगवान शंकर की श्रीराम कथा: भक्ति का अद्भुत रस
भगवान शंकर की श्रीराम कथा का रस अद्वितीय है, जो केवल देवी पार्वती ही नहीं, बल्कि भोलेनाथ को भी आनंदित करता है। यह कथा कामधेनु के समान है, जो सभी सुखों का स्रोत है। संत महात्मा इस कथा को जन-जन तक पहुँचाते हैं, और यह कथा भक्ति के खेत को हरा-भरा रखने में सहायक होती है। जानें कैसे श्रीराम जी की कथा कलयुग के वृक्ष को काटने की कुल्हाड़ी है।
Aug 14, 2025, 13:23 IST
भगवान शंकर की कथा का महत्व
भगवान शंकर द्वारा सुनाई जा रही ‘श्रीराम कथा’ का आनंद अद्वितीय है और यह सभी रसों से परे है। जैसे मेंहदी लगाने वाले के हाथों में रंग चढ़ता है, उसी प्रकार जब भगवान शंकर देवी पार्वती को कथा सुनाते हैं, तो इसका आनंद केवल देवी पार्वती ही नहीं, बल्कि भोलेनाथ भी साझा करते हैं। भोलेनाथ कहते हैं-
रामकथा का महत्व
‘रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि।
सतसमाज सुरलाक सब को न सुनै अस जानि।।’
इसका अर्थ है कि श्रीराम जी की कथा कामधेनु के समान है। कामधेनु वह गाय है, जिसकी सेवा से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास जी इस गूढ़ तथ्य को प्रकट कर रहे हैं कि ब्रह्म ज्ञान ही असली कामधेनु है। यह कोई बाहरी वस्तु नहीं, बल्कि ईश्वरीय ज्ञान है, जिसके माध्यम से सभी सुख प्राप्त होते हैं।
संतों का योगदान
जो संत इस पावन कथा को जन-जन तक पहुँचाते हैं, वे साधारण मानव नहीं, बल्कि देवी देवता होते हैं। यह मोती तभी निकलते हैं जब श्रीराम जी की दिव्य कथा का आनंद हो रहा होता है।
कथा का उदाहरण
भगवान शंकर श्रीराम कथा को एक और उदाहरण से समझाते हैं-
‘रामकथा सुंदर कर तारी।
संसय बिहग उड़ावनिहारी।।
रामकथा कलि बिटप कुठारी।
सादर सुनु गिरिराजकुमारी।।’
यहाँ श्रीराम कथा को एक सुंदर ताली के समान बताया गया है। ताली का अर्थ है कि यह कथा किसी के उपहास में नहीं, बल्कि भक्ति में बजती है।
भक्ति का खेत
प्रभु की भक्ति साधक के खेत के समान है, जो तब तक हरा-भरा रहता है जब तक उसमें संशय का पक्षी न हो। इस पक्षी को भगाने के लिए श्रीराम कथा से बेहतर कोई साधन नहीं है।
कलयुग का पेड़
आपने सुना होगा कि कलयुग से कोई नहीं बच सकता। जिस घर में कलयुग का वृक्ष होता है, वहाँ सब कुछ नष्ट हो जाता है। इस वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी की आवश्यकता होती है, और वह कुल्हाड़ी है भगवान श्रीराम जी की कथा। जहाँ यह कथा होती है, वहाँ कलयुग का वृक्ष फलता नहीं है।
क्रमशः
क्रमशः
- सुखी भारती