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अमेरिकी एच-1बी वीजा फीस में वृद्धि: भारतीयों पर संभावित प्रभाव

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एच-1बी वीजा के लिए कंपनियों पर सालाना 100,000 डॉलर का शुल्क लगाने का निर्णय लिया है, जो भारतीयों पर गहरा प्रभाव डालेगा। इस वृद्धि से वीजा प्राप्त करना कठिन हो जाएगा, जिससे युवा भारतीय पेशेवरों के लिए अवसर सीमित हो सकते हैं। कंपनियों को उच्च-कुशल श्रमिकों को ही प्रायोजित करने के लिए मजबूर किया जाएगा। भारत सरकार इस निर्णय के खिलाफ कदम उठाने की योजना बना रही है, जबकि ट्रम्प का ध्यान अमेरिकी श्रमिकों की सुरक्षा पर है। यह बदलाव भारतीय प्रतिभा के लिए एक चुनौती है, लेकिन सही कदम उठाने पर संभावित नुकसान को कम किया जा सकता है।
 

महत्वपूर्ण निर्णय


राकेश सिंह | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 19 सितंबर 2025 को एच-1बी वीजा के लिए कंपनियों पर सालाना 100,000 डॉलर (लगभग 83 लाख रुपये) का शुल्क लगाने का निर्णय लिया है। यह शुल्क पहले की तुलना में 10 गुना अधिक है, जहां पहले यह केवल 215 डॉलर से कुछ हजार डॉलर तक था। यह नया नियम 21 सितंबर 2025 से लागू होगा और इसका सबसे बड़ा प्रभाव भारतीयों पर पड़ेगा, क्योंकि एच-1बी वीजा धारकों में 71 प्रतिशत भारतीय हैं।


एच-1बी वीजा की जानकारी

एच-1बी वीजा एक विशेष वीजा है जो अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कुशल श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति देता है, विशेषकर आईटी, इंजीनियरिंग और तकनीकी क्षेत्रों में। हर साल लाखों भारतीय इस वीजा पर अमेरिका जाते हैं, जैसे टीसीएस, इंफोसिस और एचसीएल जैसी कंपनियां अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजती हैं। लेकिन अब यह शुल्क इतना बढ़ गया है कि कंपनियों को कई बार विचार करना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, यदि कोई कंपनी एक भारतीय श्रमिक को एच-1बी वीजा पर रखना चाहती है, तो उसे हर साल 100,000 डॉलर अतिरिक्त खर्च करने होंगे। भारतीय आईटी कंपनियों ने 2025 में कुल 13,396 एच-1बी वीजा का प्रायोजन किया था, जिसकी पुरानी फीस लगभग 13.4 मिलियन डॉलर थी, लेकिन अब यह 1.34 बिलियन डॉलर हो जाएगी। इसका मतलब है कि कंपनियों का लाभ 10 प्रतिशत तक कम हो सकता है।


भारतीयों पर प्रभाव

वीजा प्राप्त करना अब कठिन हो जाएगा। कंपनियां अब केवल उच्च-कुशल और आवश्यक श्रमिकों को ही प्रायोजित करेंगी, क्योंकि शुल्क बहुत महंगा हो गया है। युवा भारतीय इंजीनियर्स और आईटी पेशेवरों के लिए, जो अमेरिका में अच्छी सैलरी और करियर की उम्मीद करते हैं, उनके लिए दरवाजे बंद हो सकते हैं। माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां अपने विदेशी कर्मचारियों को चेतावनी दे रही हैं कि उन्हें 24 घंटे के भीतर निर्णय लेना होगा, क्योंकि शुल्क बढ़ने से नौकरियों पर खतरा है। भारतीय आईटी उद्योग में अल्पकालिक हलचल होगी, और कंपनियां स्थानीय अमेरिकी श्रमिकों को अधिक नियुक्त कर सकती हैं। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय कंपनियां पहले से ही एच-1बी वीजा पर निर्भरता कम कर रही हैं, एआई और स्थानीय भर्ती के कारण। इसलिए दीर्घकालिक में प्रभाव कम हो सकता है। लेकिन फिलहाल, हजारों भारतीय परिवारों का अमेरिका जाने का सपना टूट सकता है, क्योंकि वीजा प्रक्रिया अब और महंगी और प्रतिस्पर्धात्मक हो जाएगी।


ट्रम्प की योजना

डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि एच-1बी वीजा का दुरुपयोग हो रहा है और यह अमेरिकी श्रमिकों की नौकरियों को छीन रहा है। वे इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानते हैं, क्योंकि कंपनियां सस्ते विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करके अमेरिकियों को निकाल देती हैं। उदाहरण के लिए, कुछ आईटी कंपनियां एच-1बी श्रमिकों को लाकर अमेरिकी कर्मचारियों को निकाल रही हैं। ट्रम्प की नीति में एक गोल्ड कार्ड वीजा भी है, जहां 1 मिलियन डॉलर (लगभग 8.3 करोड़ रुपये) का निवेश करने वाले विदेशियों को तेजी से वीजा मिलेगा। उनका उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा करना और अमीर निवेशकों को आकर्षित करना है।


भारत सरकार की प्रतिक्रिया

भारत सरकार इस निर्णय से चिंतित है, क्योंकि एच-1बी वीजा भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच पहले से ही व्यापार और आव्रजन पर बातचीत चल रही है। भारत एच-1बी वीजा कार्यक्रम को सुरक्षित रखने के लिए प्रयासरत है, और यह ट्रम्प 2.0 में रिश्तों पर तनाव डाल सकता है। विदेश मंत्रालय संभवतः अमेरिका से कूटनीतिक स्तर पर बात करेगा और भारतीय आईटी उद्योग के हितों की रक्षा करेगा। कुछ रिपोर्ट्स कहती हैं कि भारत अनडॉक्यूमेंटेड भारतीयों पर ट्रम्प की सख्ती के खिलाफ भी आवाज उठाएगा। लेकिन ट्रम्प की प्रोजेक्ट फायरवॉल नीति से परमिट भी प्रभावित हो सकते हैं।


संवाद और विवाद

डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी के बीच अच्छे संबंध हैं। दोनों के बीच व्यापार सौदों पर चर्चा हो रही है। लेकिन यह शुल्क वृद्धि भारतीयों को लक्षित करती हुई प्रतीत होती है। यह अमेरिका की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति का हिस्सा है, लेकिन भारत जैसे सहयोगी देशों के साथ तनाव बढ़ा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को अपनी आईटी उद्योग को विविधता लाने की आवश्यकता है, जैसे कि कनाडा या यूरोप में विकल्प तलाशना। कुल मिलाकर, यह बदलाव भारतीय प्रतिभा के लिए एक चुनौती है, लेकिन यदि सरकार सही कदम उठाए तो संभावित नुकसान को कम किया जा सकता है। यह निर्णय अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करेगा, क्योंकि तकनीकी कंपनियां विदेशी प्रतिभा पर निर्भर हैं। लेकिन ट्रम्प का ध्यान अमेरिकी नौकरियों पर है। भारतीयों को अब वीजा के लिए अधिक तैयारी करनी होगी और कंपनियों को लागत कम करने के नए तरीके खोजने होंगे। यह देखना होगा कि भारत और अमेरिका के रिश्ते इस झटके से कैसे उबरते हैं। (लेखक आईटीवी नेटवर्क के प्रबंध संपादक हैं।)