एशेज सीरीज: क्रिकेट की सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगिता का रोमांच
एशेज का ऐतिहासिक सफर
नई दिल्ली: इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच एशेज सीरीज क्रिकेट के इतिहास में एक अद्वितीय और रोमांचक अध्याय है। 2025/26 एशेज का पहला टेस्ट पर्थ के ऑप्टस स्टेडियम में शुरू होने जा रहा है, और दोनों टीमें इस मुकाबले में जीत के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। एशेज का खिताब केवल एक ट्रॉफी नहीं है, बल्कि यह गर्व, परंपरा और प्रतिष्ठा की प्रतीक है, जिसे खिलाड़ी अपने करियर की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानते हैं।
एशेज का नामकरण
एशेज सीरीज का इतिहास 140 वर्षों से भी अधिक पुराना है। इसकी शुरुआत 29 अगस्त 1882 को हुई, जब ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को उसकी धरती पर हराकर एक बड़ा उलटफेर किया। इस हार ने इंग्लिश क्रिकेट को हिला कर रख दिया।
इस घटना के बाद, अंग्रेज पत्रकार रेजिनाल्ड शर्ली ब्रूक्स ने 'स्पोर्टिंग टाइम्स' में एक व्यंग्यात्मक मृत्युलेख प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने कहा कि इंग्लिश क्रिकेट का अंत हो चुका है और उसकी राख ऑस्ट्रेलिया ले जाई जाएगी। यही कटाक्ष आगे चलकर एशेज की कहानी का आधार बना।
एशेज की स्थापना
1882 की हार के दो महीने बाद, इंग्लैंड की टीम कप्तान इवो ब्लाई के नेतृत्व में ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई। ब्लाई ने यह घोषणा की कि वे इंग्लिश क्रिकेट की 'राख' वापस लेकर आएंगे। किस्मत से, इंग्लैंड ने यह सीरीज 2-1 से जीत ली।
इस जीत के बाद इंग्लिश कप्तान को एक छोटा मिट्टी का कलश भेंट किया गया, जो आगे चलकर एशेज का प्रतीक बन गया। तब से हर इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट सीरीज को एशेज सीरीज कहा जाने लगा।
एशेज कलश का रहस्य
एशेज कलश में क्या है? इस कलश में क्या रखा है, इस पर दशकों से चर्चाएं होती रही हैं।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार: इस कलश में उस बेल की राख है, जिसका उपयोग 1882 की ऐतिहासिक सीरीज में हुआ था। कुछ लोग मानते हैं कि इसमें एक जली हुई गेंद का आवरण या जला हुआ स्टंप रखा है। 1998 में इवो ब्लाई की बहू ने दावा किया कि कलश में उनकी सास की जली हुई पोशाक के कपड़े की राख है। हालांकि, सच्चाई पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन यही रहस्य इसे और भी खास बनाता है।
मूल कलश की विरासत
1927 में इवो ब्लाई के निधन के बाद, उनकी पत्नी ने मूल एशेज कलश को लंदन के लॉर्ड्स स्थित MCC (मैरीलीबोन क्रिकेट क्लब) को दान कर दिया। तब से यह कलश लॉर्ड्स के संग्रह में सुरक्षित है और इसे बहुत कम मौकों पर ही यात्रा की अनुमति मिलती है।