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ब्रिटेन के पहले अश्वेत क्रिकेटर David Lawrence का निधन: खेल में विविधता के लिए उनकी आवाज़

ब्रिटेन के पहले अश्वेत क्रिकेटर डेविड लॉरेंस का हाल ही में निधन हो गया। 61 वर्ष की आयु में, उन्होंने अपने करियर में सीमित समय खेला, लेकिन अपनी गति और जुनून से दर्शकों का दिल जीत लिया। चोट के कारण उनका करियर छोटा रहा, लेकिन उन्होंने क्रिकेट में विविधता और समानता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जानें उनके संघर्ष, उपलब्धियों और ECB चेयरमैन के भावुक बयान के बारे में।
 

डेविड लॉरेंस का निधन

डेविड लॉरेंस: इंग्लैंड के पहले अश्वेत क्रिकेटर और तेज गेंदबाज डेविड लॉरेंस का रविवार को 61 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें अपने समय के सबसे रोमांचक पेसरों में से एक माना जाता था, जिन्होंने इंग्लैंड के लिए सीमित समय खेला, लेकिन अपनी गति और जुनून से दर्शकों का दिल जीत लिया।


क्रिकेट करियर और चोट

डेविड सिड लॉरेंस का क्रिकेट करियर चोट के कारण अपेक्षाकृत छोटा रहा, लेकिन उन्होंने मैदान के बाहर भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विविधता और समावेशिता के लिए उनकी आवाज ने क्रिकेट जगत में नई दिशा दी। हाल ही में, उन्हें क्रिकेट में उनके योगदान के लिए MBE से सम्मानित किया गया था।


चोट के कारण करियर में रुकावट

1988 से 1992 के बीच, लॉरेंस ने इंग्लैंड के लिए 5 टेस्ट और 1 वनडे मैच खेले। हालांकि, वेलिंगटन टेस्ट में एक गंभीर घुटने की चोट ने उनके करियर को बाधित कर दिया। उनकी रफ्तार और ऊर्जा ने उन्हें मैदान पर एक अलग पहचान दिलाई।


विविधता के लिए संघर्ष

क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, लॉरेंस ने खेल में विविधता और समानता के लिए आवाज उठाई। उनकी सेवाओं के लिए, उन्हें 2025 में किंग्स बर्थडे ऑनर्स के तहत MBE सम्मान मिला। इसके अलावा, इस वर्ष की शुरुआत में, उन्हें इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) का पहला मानद आजीवन उपाध्यक्ष भी नियुक्त किया गया।


बीमारी से लड़ाई

2023 में, लॉरेंस को Motor Neurone Disease (MND) का पता चला था। इसके बावजूद, उन्होंने साहस और गरिमा के साथ अपनी लड़ाई जारी रखी। उनकी सकारात्मकता और आत्मबल हमेशा उनके चाहने वालों के लिए प्रेरणादायक रहेगा।


ECB चेयरमैन का शोक संदेश

ECB के चेयरमैन रिचर्ड थॉम्पसन ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा, "डेविड सिड लॉरेंस इंग्लिश क्रिकेट के एक सच्चे पथप्रदर्शक थे, जो अद्भुत साहस, चरित्र और करुणा से भरे हुए थे। मैदान के बाहर भी उन्होंने क्रिकेट को समावेश और प्रतिनिधित्व की दिशा में आगे बढ़ाया। उनकी बीमारी के बावजूद, उन्होंने अद्वितीय शक्ति और गरिमा दिखाई। उनकी विरासत हमेशा क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में जीवित रहेगी।"