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महिलाओं की भागीदारी से बदल रही ग्रामीण अर्थव्यवस्था

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी से आर्थिक बदलाव की लहर तेज हो रही है। सरकार की बीमा सखी योजना के तहत महिलाएं न केवल बीमा उत्पादों की जानकारी दे रही हैं, बल्कि स्थायी आय के स्रोत भी बना रही हैं। यह पहल उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर ले जा रही है, जिससे वे अपने गांव में ही सशक्त बन रही हैं। जानें इस योजना के तहत महिलाएं कैसे आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं और अपने परिवारों के लिए महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
 

महिलाओं की नई भूमिका

भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक परिवर्तन की गति अब महिलाओं की सक्रियता से बढ़ रही है। लंबे समय तक घरेलू कार्यों में सीमित रहने वाली महिलाएं अब न केवल कार्यक्षेत्र में कदम रख रही हैं, बल्कि स्थायी आय के स्रोत भी स्थापित कर रही हैं। इस बदलाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है सरकार की एक विशेष योजना, जो महिलाओं को बीमा क्षेत्र से जोड़ने का प्रयास कर रही है, और वह भी बिना किसी उच्च शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता के।


सरकार की इस योजना के अंतर्गत, महिलाओं को बीमा की मूल बातें सिखाकर उन्हें 'बीमा सखी' के रूप में प्रशिक्षित किया जाता है। ये बीमा सखियां अपने गांव और आस-पास के क्षेत्रों में लोगों को बीमा उत्पादों की जानकारी देती हैं, फॉर्म भरने में मदद करती हैं और क्लेम प्रक्रिया में भी सहायता करती हैं। इसके बदले में उन्हें कमीशन और अन्य प्रोत्साहनों के रूप में मासिक आय प्राप्त होती है।


इस पहल ने उन महिलाओं के लिए नए अवसरों के द्वार खोले हैं, जो पारंपरिक नौकरी या व्यापार के अवसरों से दूर थीं। यहां तक कि कम पढ़ी-लिखी महिलाएं भी इस कार्य को आसानी से कर सकती हैं, क्योंकि इसमें व्यावहारिक जानकारी और संवाद कौशल की अधिक आवश्यकता होती है।


इस योजना की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह महिलाओं को उनके अपने गांव में सशक्त बना रही है। उन्हें न तो शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है और न ही परिवार को छोड़ना पड़ रहा है। बीमा सखी बनने के बाद, वे अपनी स्थानीय पहचान के साथ काम कर रही हैं और आत्मविश्वास में उल्लेखनीय वृद्धि देख रही हैं।


कुछ बीमा सखियां हर महीने ₹6000 से ₹7000 तक कमा रही हैं। यह न केवल उनके लिए आर्थिक सहायता है, बल्कि उनके परिवार की आय में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही है।