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गुरु तेग बहादुर की बलिदानी गाथा का मंचन: 'हिंद की चादर' में आधुनिकता का संगम

पानीपत में आयोजित 'हिंद की चादर' के मंचन ने गुरु तेग बहादुर की 350वीं स्मृति को समर्पित किया। इस भव्य कार्यक्रम में 20 कलाकारों ने गुरु के आदर्शों और बलिदान को जीवंत किया। कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों को संवेदनशीलता से दर्शाते हुए, इस प्रस्तुति ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया। कार्यक्रम का उद्देश्य गुरु तेग बहादुर की विरासत को युवा पीढ़ी तक पहुँचाना था।
 

गुरु तेग बहादुर की 350वीं स्मृति में भव्य आयोजन


पानीपत में आर्य पीजी महाविद्यालय के ऑडिटोरियम में सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर की 350वीं वर्षगांठ पर 'हिंद की चादर' का भव्य मंचन किया गया। इस थ्री डी लाइट और साउंड प्ले में 20 कलाकारों ने गुरु तेग बहादुर के आदर्शों, त्याग और सत्य के प्रति उनकी निष्ठा को प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया।


कश्मीरी पंडितों पर अत्याचारों का संवेदनशील चित्रण


कलाकारों ने गुरु साहिब के बचपन, उनकी आध्यात्मिक प्रवृत्ति और मुगल शासन के दौरान कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचारों को संवेदनशीलता से दर्शाया। शो का मुख्य आकर्षण वह क्षण था जब गुरु तेग बहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए अपने शीश की बलि देने का संकल्प लिया। उनके अनुयायियों की शहादत ने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया।


भावनात्मक प्रस्तुति और सशक्त संदेश


दादा कुशाल दहिया का बलिदान इस प्रस्तुति का सबसे भावुक दृश्य था। गंभीर नरेशन और 3 डी प्रोडक्शन ने दर्शकों को उस कालखंड में पहुँचाया जब गुरु तेग बहादुर ने धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। अंतिम दृश्यों में शांति और सहिष्णुता का सशक्त संदेश प्रस्तुत किया गया।


युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा

अतिरिक्त उपायुक्त डॉ. पंकज ने कहा कि यह मंचन गुरु तेग बहादुर की विरासत को युवा पीढ़ी तक पहुँचाने का एक उत्कृष्ट माध्यम है। शो के अंत में प्रमुख कलाकारों और आयोजकों को सम्मानित किया गया। इस अवसर पर कई गणमान्य व्यक्ति और दर्शक उपस्थित थे।