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भारत की नई कूटनीति: प्रदर्शन और वास्तविकता का संगम

भारत की कूटनीति अब एक नए रंग में ढल गई है, जिसमें प्रदर्शन और वास्तविकता का अनोखा मिश्रण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने इसे एक शो में बदल दिया है, जो न केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बल्कि घरेलू स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गया है। जानें कैसे यह नई रणनीति भारत की विदेश नीति को प्रभावित कर रही है और इसके पीछे की चुनौतियाँ क्या हैं।
 

भारत की कूटनीति का नया चेहरा

कूटनीति अक्सर चुपचाप चलती है, लेकिन वर्तमान में भारत ने इसे एक नए तरीके से प्रस्तुत किया है। अब यह केवल साउथ ब्लॉक के गलियारों में नहीं, बल्कि सार्वजनिक मंचों पर भी दिखाई दे रही है। भारत की विदेश नीति अब एक शो बन गई है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका महत्वपूर्ण है। जब से उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आत्मविश्वास के साथ कदम रखा है, तब से भारत की कूटनीति एक नए रंग में ढल गई है।


पहले कार्यकाल में मोदी की विदेश यात्राएँ और विश्व नेताओं के साथ फोटो-ऑप्स ने 'नया भारत' का एक नया चेहरा प्रस्तुत किया। इससे आम भारतीयों को गर्व महसूस हुआ, क्योंकि वे ओबामा, ट्रंप और अन्य वैश्विक नेताओं के साथ अपने प्रधानमंत्री को देख रहे थे।


दूसरे कार्यकाल में, जब वैश्विक संघर्ष बढ़ने लगे, तब यह जुड़ाव और भी गहरा हो गया। भारतीय नागरिकों ने युद्धों को ध्यान से देखना शुरू कर दिया, जिससे विदेश नीति व्यक्तिगत और भावनात्मक बन गई। अब यह केवल संधियों का मामला नहीं रह गया, बल्कि यह एक कहानी बन गई है जो हर इशारे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती है।


G20 की मेज़बानी और उसकी महत्ता

जब भारत ने G20 की मेज़बानी की, तो इसे एक साधारण सम्मेलन के रूप में नहीं देखा गया। इसे एक भव्य आयोजन के रूप में प्रस्तुत किया गया, जो राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बन गया। अब वैश्विक मुद्दे केवल थिंक टैंकों या नेताओं की बपौती नहीं रह गए, बल्कि यह एक राष्ट्रीय उत्सव बन गए हैं।


भारत की नई विदेश नीति का यह स्वरूप कूटनीति को एक तमाशे में बदलने का प्रयास है। अगर अमित शाह घरेलू राजनीति को संभालते हैं, तो एस. जयशंकर वैश्विक मंच पर भारत के हितों को संभालते हैं। उनकी शैली विदेश नीति को सहज और सहभागी बनाती है, लेकिन यह भी संकुचन का कारण बन सकती है।


भारत की चुनौतियाँ और विरोधाभास

वर्तमान में, भारत अमेरिका के साथ तनाव में है, जिसका असर भारतीय निर्यात पर पड़ा है। मोदी सरकार ने नागरिकों से स्वदेशी का आह्वान किया है, जिससे एक राष्ट्रवादी मानसिकता का निर्माण हो रहा है। यह स्थिति नागरिकों को एक दुविधा में डाल रही है।


यह चक्र जनता को भ्रमित करता है। आज भारत का असली दुश्मन कौन है? कौन सा ब्रांड उपभोग करना सुरक्षित है? विदेश नीति अब मूड स्विंग्स में बदल गई है, जो घरेलू राजनीति के लिए प्रस्तुत की जा रही है।


खतरा केवल पाखंड का नहीं है, बल्कि यह थकान का भी है। नागरिकों को यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि कूटनीति मनमर्जी पर चलती है। लेकिन विदेश नीति अनुशासन पर आधारित होनी चाहिए, न कि प्रदर्शन पर।


भारत की विदेश नीति का भविष्य

जयशंकर की शैली ने इसे तेज़ पलटाव के तमाशे में बदल दिया है। यह घरेलू दर्शकों को रोमांचित कर सकता है, लेकिन विदेश में साझेदारों को असहज करता है। जब विदेश नीति को तालियों के लिए मंच बना दिया जाता है, तो यह खोखली हो जाती है।


भारत की विदेश नीति अब व्यवहारिकता और प्रदर्शन का मिश्रण है। मोदी और जयशंकर ने इसे जन राजनीति का रंगमंच बना दिया है। लेकिन विश्वसनीयता के बिना दृश्यता खतरनाक हो सकती है। अगर रणनीति तमाशे में बदलती रही, तो भारत को भविष्य में अलगाव का सामना करना पड़ सकता है।