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भारत बंद 2025: श्रमिक संगठनों का बड़ा विरोध प्रदर्शन

भारत बंद 2025 में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ हड़ताल का आह्वान किया है। इस आंदोलन में बैंकिंग, परिवहन, और बिजली जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर असर पड़ने की संभावना है। ट्रेड यूनियनों ने चार नए लेबर कोड को श्रमिकों के अधिकारों पर हमला बताया है और मांग की है कि इन्हें रद्द किया जाए। इसके अलावा, निजीकरण का विरोध और सार्वजनिक क्षेत्र में नई भर्तियों की मांग भी की जा रही है। जानें इस हड़ताल के पीछे की पूरी कहानी और इसके मुख्य मुद्दे।
 

भारत बंद का आह्वान

भारत बंद 2025: आज देशभर में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों ने भारत बंद का आयोजन किया है। यह हड़ताल केंद्र सरकार की 'कॉर्पोरेट समर्थक' नीतियों के खिलाफ और 'मजदूर विरोधी, किसान विरोधी' के रूप में की जा रही है। इस विरोध प्रदर्शन में बैंकिंग, परिवहन, डाक सेवाएं, कोयला खनन और बिजली जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर असर पड़ने की संभावना है। किसानों और ग्रामीण मजदूर संगठनों की भी इस हड़ताल में भागीदारी देखी जा रही है.


ट्रेड यूनियनों की मांगें

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, ट्रेड यूनियनों का कहना है कि सरकार ने उनकी 17 सूत्रीय मांगों को लगातार नजरअंदाज किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 10 वर्षों में राष्ट्रीय श्रमिक सम्मेलन का आयोजन नहीं किया गया और सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर जन आंदोलनों को दबाने का प्रयास किया है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में लागू किए गए सख्त कानूनों का हवाला देते हुए यूनियनों ने लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन का आरोप लगाया है.


हड़ताल के मुख्य मुद्दे

क्या है हड़ताल का मुख्य मुद्दा?

हड़ताल का मुख्य मुद्दा चार नए लेबर कोड हैं, जिन्हें ट्रेड यूनियनों ने श्रमिकों के अधिकारों पर हमला बताया है। यूनियनों का कहना है कि ये कोड हड़ताल करने के अधिकार को कमजोर करते हैं, काम के घंटे बढ़ाते हैं और श्रमिकों को सुरक्षा की गारंटी नहीं देते। यूनियनों की मांग है कि इन चारों लेबर कोड को रद्द किया जाए। हड़ताल में भाग ले रहे प्रमुख संगठनों के साथ संयुक्त किसान मोर्चा और ग्रामीण मजदूर संगठन भी समर्थन कर रहे हैं.


निजीकरण का विरोध

कंपनियों के निजीकरण का विरोध

यूनियनों ने सरकार पर बिजली कंपनियों के निजीकरण का भी विरोध किया है। उनका मानना है कि इससे कर्मचारियों की नौकरियों और उपभोक्ताओं की सेवाओं पर नकारात्मक असर पड़ेगा। प्रवासी मजदूरों के मताधिकार को सीमित करने का आरोप भी इस आंदोलन में उठाया गया है.


मजदूर संगठनों की प्रमुख मांगें

सार्वजनिक क्षेत्र में नई भर्तियां शुरू

मजदूर संगठनों की प्रमुख मांगों में सार्वजनिक क्षेत्र में नई भर्तियां शुरू करना, निजीकरण पर रोक लगाना, मनरेगा में मजदूरी और कार्यदिवस बढ़ाना, शिक्षा-स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना और न्यूनतम वेतन ₹26,000 मासिक तय करना शामिल है। साथ ही पुरानी पेंशन योजना की बहाली और किसानों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी और कर्जमाफी भी इस चार्टर का हिस्सा हैं.