मुंशी प्रेमचंद: साहित्य में आम आदमी का नायक
प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान
योगेश कुमार गोयल द्वारा प्रस्तुत इस लेख में, मुंशी प्रेमचंद को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह माना गया है। उन्होंने न केवल दासता के खिलाफ आवाज उठाई, बल्कि लेखकों के उत्पीड़न के खिलाफ भी सक्रियता दिखाई। उनके लेखन में उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, और संस्मरण जैसी कई विधाएँ शामिल हैं।
आम आदमी का साहित्यकार
प्रेमचंद को 'आम आदमी का साहित्यकार' कहा जाता है, क्योंकि उनकी कहानियाँ आम जीवन से जुड़ी होती हैं। उन्होंने गरीबों की पीड़ा को समझा और अपने साहित्य के माध्यम से उसका समाधान प्रस्तुत किया।
अद्वितीय कलमकार
उनकी रचनाएँ आम आदमी की भावनाओं और समस्याओं को गहराई से व्यक्त करती हैं। हिंदी साहित्य में उनके जैसा कोई और लेखक नहीं हुआ है। उन्होंने समाज को रूढ़िवादिता से बाहर निकालने का प्रयास किया और उन्हें हिंदी साहित्य का माइलस्टोन माना जाता है।
उर्दू से शुरूआत
कम लोग जानते हैं कि मुंशी प्रेमचंद ने अपने लेखन की शुरुआत उर्दू से की थी। उनका पहला कहानी संग्रह 'सोज ए वतन' 1909 में प्रकाशित हुआ था, जिसे ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर लिया था।
नवाब राय से प्रेमचंद तक
उनके पहले कहानी संग्रह के जब्त होने के बाद, संपादक मुंशी दयानारायण ने उन्हें सलाह दी कि वे 'प्रेमचंद' नाम से लिखें। इस प्रकार, वे नवाब राय से प्रेमचंद बन गए।
प्रेमचंद की रचनाएँ
उन्होंने अपने जीवन में 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियाँ, और कई नाटक और लेख लिखे। उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में 'गोदान', 'गबन', और 'निर्मला' शामिल हैं।
कालजयी उपन्यास 'गोदान'
'गोदान' उनका अंतिम उपन्यास है, जो 1936 में लिखा गया था। यह आज भी एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है।
फिल्मों में प्रेमचंद
प्रेमचंद की कहानियों पर कई फिल्में बनी हैं, जैसे 'सेवासदन' और 'गोदान'। उनकी कहानी 'कफन' पर मृणाल सेन ने फिल्म बनाई, जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।