अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु वार्ता में तनाव: क्या है असली मुद्दा?
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका-ईरान की नोकझोंक
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका और ईरान के बीच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मंगलवार को तीखी बहस हुई। दोनों देशों के बीच परमाणु समझौते की बहाली को लेकर गहरे मतभेद स्पष्ट रूप से सामने आए। अमेरिका ने प्रत्यक्ष वार्ता के लिए अपनी तत्परता जताई, जबकि ईरान ने वाशिंगटन की शर्तों को ठुकरा दिया।
मॉर्गन आर्टेगस का बयान
अमेरिका की उप-दूत मॉर्गन आर्टेगस ने सुरक्षा परिषद में कहा कि किसी भी नए या संशोधित परमाणु समझौते में ईरान को यूरेनियम संवर्धन की अनुमति नहीं दी जा सकती। उन्होंने यह भी कहा कि यह शर्त क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा के लिए आवश्यक है। अमेरिका का मानना है कि यूरेनियम एनरिचमेंट की प्रक्रिया ईरान को परमाणु हथियार बनाने की ओर ले जा सकती है, जिसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
ईरान का प्रतिवाद
इस पर ईरान के स्थायी प्रतिनिधि अमीर सईद इरावानी ने अमेरिका के रुख को एकतरफा और दबाव बनाने वाला बताया। उन्होंने कहा कि परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) के तहत ईरान को शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए यूरेनियम संवर्धन का पूरा अधिकार है। इरावानी ने स्पष्ट किया कि ईरान धमकियों के आगे झुकने वाला नहीं है और अपने अधिकारों की रक्षा करेगा।
पिछली वार्ताओं का संदर्भ
परमाणु समझौते को लेकर अमेरिका और ईरान के बीच पहले भी बातचीत हो चुकी है। जून में ईरान और इजरायल के बीच संघर्ष से पहले, दोनों देशों के बीच परमाणु मुद्दे पर पांच दौर की वार्ता हुई थी। लेकिन क्षेत्रीय तनाव और सैन्य घटनाओं के कारण यह बातचीत ठप हो गई। अमेरिका द्वारा ईरान के कुछ परमाणु ठिकानों पर हमलों ने स्थिति को और जटिल बना दिया।
अंतरराष्ट्रीय दबाव में ईरान
इस घटनाक्रम के बीच, ईरान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा है। सितंबर के अंत में, यूरोपीय देशों की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने 'स्नैपबैक' तंत्र का उपयोग करते हुए ईरान पर हथियार प्रतिबंध समेत कई पाबंदियां फिर से लागू कीं। हालांकि, रूस और चीन ने इस निर्णय का विरोध किया है। ईरान लगातार यह दावा करता रहा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह से शांतिपूर्ण है और ऊर्जा व वैज्ञानिक जरूरतों के लिए संचालित किया जा रहा है।
भविष्य की चुनौतियाँ
सुरक्षा परिषद में हुई बहस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि परमाणु समझौते की राह आसान नहीं है और अमेरिका-ईरान के बीच विश्वास की खाई अभी भी बनी हुई है।