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अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर नीति को दी मंजूरी, पासपोर्ट पर केवल मेल और फीमेल विकल्प

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की थर्ड जेंडर नीति को मान्यता देते हुए पासपोर्ट पर केवल मेल और फीमेल विकल्प रखने का निर्णय लिया है। इस फैसले पर कुछ लिबरल जजों ने असहमति जताई है। जानें इस नीति के पीछे का इतिहास और अमेरिकी सेना की नई भर्ती नीति के बारे में।
 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नई दिल्ली: अमेरिका में थर्ड जेंडर के संबंध में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीति को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दे दी है। अब अमेरिकी पासपोर्ट पर थर्ड जेंडर का विकल्प उपलब्ध नहीं होगा, केवल मेल और फीमेल के विकल्प ही रहेंगे।


लिंग पहचान का मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि पासपोर्ट पर लिंग की जानकारी जन्म के समय दर्ज लिंग के अनुसार होगी। हालांकि, तीन लिबरल जजों ने इस फैसले पर असहमति जताई है।


राष्ट्रपति का आदेश

डोनाल्ड ट्रंप ने इस साल जनवरी में विदेश विभाग को पासपोर्ट नियमों में बदलाव का निर्देश दिया था। उनके आदेश के अनुसार, अमेरिका में जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर केवल दो लिंगों को मान्यता दी जाएगी।


निचली अदालत का निर्णय

इससे पहले, अमेरिकी न्याय विभाग के आदेश को निचली अदालत ने रद्द कर दिया था, जिसके बाद ट्रंप प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट का सहारा लिया।


पासपोर्ट नियमों का इतिहास

1970 में अमेरिका में पासपोर्ट पर लिंग दिखाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी। 1990 में मेडिकल सर्टिफिकेट के आधार पर लिंग बदलने की अनुमति दी गई थी। 2021 में, पूर्व राष्ट्रपति बाइडेन की सरकार ने बिना किसी मेडिकल सर्टिफिकेट के लिंग चुनने का अधिकार दिया था।


अमेरिकी सेना की नीति

अमेरिकी सेना ने भी थर्ड जेंडर के संबंध में कुछ बदलाव किए हैं। सेना ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी साझा की है कि अब ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सेना में भर्ती नहीं किया जाएगा।


जेंडर डिस्फोरिया

जेंडर डिस्फोरिया एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जिसमें व्यक्ति को अपने जैविक लिंग और पहचान में असमानता का अनुभव होता है।