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इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष: मुस्लिम देशों की चुप्पी के पीछे की वजहें

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है, लेकिन मुस्लिम देशों की चुप्पी के पीछे कई जटिल कारण हैं। इस लेख में हम जानेंगे कि क्यों ये देश केवल बयानबाजी तक सीमित रहते हैं और क्या राजनीतिक और आर्थिक मजबूरियां उन्हें कार्रवाई से रोकती हैं। इजरायल की सैन्य ताकत और पश्चिमी देशों के समर्थन का भी इस स्थिति पर गहरा प्रभाव है।
 

इजरायल और फिलिस्तीन का संघर्ष

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच का संघर्ष कई वर्षों से जारी है, और गाज़ा की स्थिति अक्सर दुनिया को झकझोर देती है। बमबारी के दृश्य, निर्दोष लोगों की चीखें और ध्वस्त इमारतों की छवियां सोशल मीडिया और समाचार चैनलों पर बार-बार दिखाई देती हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब इतने सारे इस्लामिक देश अपनी नाराजगी व्यक्त करते हैं और इजरायल की आलोचना करते हैं, तो वे कार्रवाई क्यों नहीं करते? क्या कारण हैं कि उनकी प्रतिक्रिया केवल शब्दों तक सीमित रह जाती है?


राजनीतिक जटिलताएं और रिश्तों की पेचीदगियां इस स्थिति का मुख्य कारण हैं। सच्चाई यह है कि राजनीति में भावनाओं की तुलना में रणनीति अधिक महत्वपूर्ण होती है। मुस्लिम देशों के बीच एकता की कमी है, जिससे वे सामूहिक रूप से कोई ठोस कदम नहीं उठा पाते। कई देशों के अमेरिका और यूरोप के साथ मजबूत आर्थिक और राजनयिक संबंध हैं, जो उन्हें इजरायल के साथ खड़ा होने के लिए मजबूर करते हैं। ऐसे में सीधे टकराव का मतलब होगा बड़े व्यापारिक और राजनीतिक समीकरणों को बिगाड़ना। इसके अलावा, कुछ देशों के इजरायल के साथ गुप्त व्यापारिक और सुरक्षा समझौते भी हैं, जो आधिकारिक टकराव को और कठिन बनाते हैं।


इजरायल की सैन्य ताकत भी एक महत्वपूर्ण कारक है। यह भले ही एक छोटा देश हो, लेकिन सैन्य शक्ति के मामले में यह क्षेत्र का एक प्रमुख खिलाड़ी है। आधुनिक हथियार, उन्नत मिसाइल प्रणाली, शक्तिशाली वायुसेना और परमाणु क्षमता इसे और भी खतरनाक बनाती है। यही कारण है कि मुस्लिम देश सीधे युद्ध में कूदने से डरते हैं, क्योंकि इससे स्थिति नियंत्रण से बाहर जा सकती है और भारी नुकसान हो सकता है।


अमेरिका और यूरोप का इजरायल के प्रति समर्थन भी इस स्थिति को प्रभावित करता है। ये देश लंबे समय से इजरायल के पक्ष में खड़े हैं और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उसका समर्थन करते हैं। यदि कोई मुस्लिम देश सैन्य कार्रवाई करने की कोशिश करता है, तो उसे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। आर्थिक नुकसान और अंतरराष्ट्रीय अलगाव का डर कई देशों को पीछे हटने के लिए मजबूर करता है।